Monday, October 31, 2016

आजा चल दीवाली मना ले

आजा चल दीवाली मना ले


हुआ जो अस्त कामनाओं का सूरज
दीप जूनून के फिर जला ले
काली रात से खौफ न खा तू
आजा चल दीवाली मना ले


आस विश्वास मूरत लक्ष्मी गणेश की
शीश इनके आगे तू झुका ले
रख वाग्देवी को मस्तिष्क में
खील खुशियों के अब बिखराले
आजा चल दीवाली मना ले


जोड़ मेहनतों के तिनके तू
ऊँची लक्ष्य हटरी बना ले
भर हसरतों के चंडोल दिल में
हृदय का दीवट यूँ सजा ले
आजा चल दीवाली मना ले


कर आह्वान प्रेम लक्ष्मी का
स्नेह आतिश जी भर छुडा ले
दूर कर तम वैर भाव का
भाई दूजों को गले लगा ले
आजा चल दीवाली मना ले


साहित्यकार सपना मांगलिक
ईमेल –sapna8manglik@gmail.com

Wednesday, October 19, 2016

क्या सच में प्यार जिंदा है ??










आज करवाचौथ का त्योहार देश भर में धूम धाम से मनाया जा रहा है सभी शादी - शुदा औरतें अपने पतियों के लिए निर्जल उपवास रखती हैं साथ में उनकी लम्बी उम्र की कामना करती हैं, उनके हाथ से पानी पी के व्रत खोलती हैं पति भी प्रसन्न हो के उन्हें विशेष तोहफे देते हैं. लाल लिबास में लिपटी दुल्हन की तरह तैयार हो के महिलायें फिर से अपने उन पुराने दिनों की याद में खो जाती हैं जब वो अपने राजकुमार समान पति का सपना युवा अवस्था में देखती थीं. पर सवाल ये है कि क्या वाक़ई प्यार जिन्दा है ? या ये सब महज एक ढोंग है , भ्रम है, दिखावा है. रोज की ज़िन्दगी में ये सब तो नहीं होता, वहां एक प्रेम करने वाला पति नहीं होता , पत्नी को उसके कर्तव्यों के तले दबाने वाला पति ही होता है. तुम ये क्यूँ पहने हो ? , वहां क्यूँ बैठी , सर पे पल्ला रखो , पैर छुओ और न जाने क्या – क्या ...............
क्यूँ आखिर क्यूँ , एक औरत खुद खाना बनाती है पर सबसे आख़िर में खाती है, रोज सुबह सबसे जल्दी उठती है और रात में काम करके सबसे आखिर में सोती है. यहाँ तक की उसे कपड़े पहनने के तौर तरीके भी ससुराल वाले सिखाते हैं. वो रोज घुट – घुट के जीती है फिर भी मुस्कुराती है. वो उस झिड़क को भी प्रेम समझती है और रम जाती है.
तब आज करवा चौथ के दिन ये प्यार जिन्दा है ? या फिर किसी समाज के कुरीति में लिपटी सुबह से भूखी , प्यासी औरत एक और झिड़क में खुद को खुश रखने झूटी तसल्ली दे रही है. 

- Shikha Pari 

Tuesday, October 18, 2016

दिल को छू जाने वाली कहानी सौम्या मिश्रा

आज एकाएक किसी की याद आई और मेरी आँखे भर आई।मेरी ये पुरानी याद और दिल के भाव है, जिसे आज शब्द देकर पटल पर प्रस्तुत कर रही हूँ।


कालेज के दिनों के बाद है जब मैं कंटीन में लंच के वक़्त जाया करती थी । वैसे तो वहां बहुत से कर्मचारी थे, लेकिन एक लड़का करीब 13 साल का जिसका नाम अजय वह भी काम किया करता था।
अजय मेरे पास रोज आता था बोलता दीदी नमस्ते और कैसी है, आप । मैं बोलती ठीक हूँ भैया।
थोड़ी देर चुप रहने के बाद वो एकाएक बोलता दीदी कुछ रूपये होंगे मैं शांत होकर कुछ सोचती फिर बोलती तुम पैसे का क्या करोगे यहाँ काम करते हो उसका पैसा तो मिलता होगा ।
अजय बोलता है हाँ मिलता हैं न 600 रूपया लेकिन पूरा पैसा मम्मी की बीमारी में लग जाता है, मेरी मम्मी बहुत बीमार रहती हैं।मैंने पूछा अच्छा और तुम्हारे पापा वो । तब अजय बोलता की मम्मी बोलती है की जब मैं छोटा था तो वो कहीं चले गए।
फिर मैंने पूछा की जो पैसा मैं देती हूँ उसका क्या करते हो? तो वो बोला को मैं पढाई करता हूँ और जो खर्च आता इस में से ही खर्च कर लेता ।
मैंने कहा की तुम दिन भर यहीं रहते तो पढाई कब करते हो क्योँकि स्कूल तो जाते नही, तो वो बोला मेरे स्कूल के सर बहुत अच्छे है उनकी सब बताया तो उन्हीने कहा की ठीक है शाम को मेरे घर आकर पढ़ लिया करो सो मैं घर जाकर सीधे सर के घर पढ़ने चला जाता हूँ।
मेरा लंच का समय समाप्त हो गया था मैंने अपना बैग उठाया और क्लास की और चल दी,पीछे से अजय आवाज देता दीदी पैसे नही दिए मैंने बैग की चैन खोली 7 रूपये थे उसको दे दिया उसने खुश होते हुए थैंक यू बोला और अपने काम पर लग गया, मैं भी क्लास की ओर चली आई।
तीन चार महीने गुजर गए थे मैं कैंटीन की तरफ से गुजरी वहां अपनी बोतल में पानी भर रही थी मैंने अजय को देखा आवाज लगाई । वह कुछ नही बोला, मैंने कहा क्या हुआ अजय तुम आज कुछ नही बोले तबियत वगैरह ठीक है, लेकिन उसने कुछ जवाब नही दिया ।
मुझे क्लास के लिए देरी हो रही थी और एग्जाम की वजह से कॉलेज बन्द भी होने वाला था तो मैंने बैग से 100 रुपये निकाले और उसे देने लगी, लेकिन अजय ने वो रुपये नही लिए और रोने लगा बोला दीदी अब कोई जरूरत नही क्योँकि पूरे महीने के पैसे बच जाते मेरी मम्मी मर गयी मैं बिलकुल अकेला हो गया।
अब कोई जरूरत नही।
उसको रोता देख मेरी आँखों में आँसू आ गए। मैंने अजय से कुछ भी नही पूछा और वापस क्लास चली आई।
मेरा कॉलेज भी छूट गया, लेकिन आज भी जब अजय के बारे में सोचती हूँ तो बहुत तकलीफ होती है । एक सवाल बार बार आता है मेरे जहन में की पता नही अब वो कैसा होगा? कहाँ होगा?


सौम्या मिश्रा

मोस्ट पावरफुल परसन ही क्यूँ न बन जाऊं

मैं एक "मोस्ट पावरफुल परसन" ही क्यूँ न बन जाऊं पर हूँ तो आखिर मैं एक लड़की . एक लड़की होने का भार ही बहुत होता है . सौ पत्थर कलेजे पर माँ – बाप के रख दिए जाते हैं तब एक लड़की पैदा होती है , पत्थर से भारी सीना फिर बोझ तले लड़की दबकर इतनी दब जाती है कि बेचारी पहले से ही बोझिल हो जाती है , क्या प्रेम , क्या विश्वास ये सब तो उसको नसीब से मिलता है कहीं गर्भ में ही मार दी जाती है , अगर गलती से जन्म ले भी लिया तो दुनिया में लाकर मार दी जाती है. लाख कोशिशें करले वो खुल के जी नहीं पाती . घुट – घुट कर अन्दर ही अन्दर मर जाती है या मार दी जाती है .


तो क्यूँ पैदा ही करो गर्भ में ही मार देना उनको सही होता है दुनिया में आने ही न दो कम से कम वो गर्भ में तो खुल के साँस ले पायेंगी थोड़ी ही देर सही अंतिम सांस लेने से पहले.   

Thursday, October 13, 2016

सपना के दोहे



1
लो टूट प्रेम के गए,सुन्दर थे जो कांच।
आज दिलों पर कर रही,नफरत नंगा नाच।।

2
प्रेम धागा तोड़ चला,बाँधा हमसे बैर।
समझे जिसको अपना हम,हुआ आज वो गैर।।

3
दूर गया कोई नहीं, सब हैं रहते पास।
मन को फिर क्या सालता, हरपल रहे उदास।।

4
हैरान हूँ मैं देखकर,झूठ के ठाठ-बाट।
तिकड़मबाजी का चलन,सच है बिकता हाट।।

5
देत अल्लाह बांग तू,काम करे जल्लाद।
बेटा झगडे बाप ते,होवे खुद बर्बाद।।

6
हाथ थाम आतंक का,करते फिरें विनाश।
पेशावर जैसी भले,बिछती जाएँ लाश।।

7
अशिक्षा नर्क समान है, काहे करती खेद।
ज्ञान दीप जलाकर तुम,अन्धकार दो भेद।।



सपना मांगलिक
फ659 कमला नगर
आगरा 
sapna8manglik@gmail. com