tag:blogger.com,1999:blog-2224668348475037859.post7092762442592936972..comments2024-01-23T16:46:34.196+05:30Comments on नई क़लम - उभरते हस्ताक्षर: कलम के जेहन से - सम्पादकीयNai Kalamhttp://www.blogger.com/profile/05273880081106940510noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-2224668348475037859.post-87172712298356264762009-03-28T23:15:00.000+05:302009-03-28T23:15:00.000+05:30बहुत साधुवाद देना चाहूँगा श्री शाहिद जी को की कम स...बहुत साधुवाद देना चाहूँगा श्री शाहिद जी को की कम से कम किसी ने भारतीय संस्करों की क़द्र की वरना मेरा शायद हर किसी से भरोसा उठता जा रहा है, लगता है जैसे की हर सफ़ेद और बेदाग चेहरा रात के साये में स्याह रंग में बदल जायेगा, अब तो हम रावण को भी सम्मान की नज़र से देख सकते हैं क्योंकि वो हमसे, हमारे आज के कुकृत्यों से तुलना करने पर एक भला इंसान ही दिखता है. हम शर्म करें तो किसपे? या किस-किस पे, कल एक थी आज चरों तरफ मुझे सिर्फ डरी सहमी तसलीमाएं दिखती हैं जो अब शायद घरों से निकलेंगीं.<BR/>किस हक से हम विश्व गुरु होने की बात करें और किस हक से बात करें नारी को सम्मान देने की, अरे जब हम उसके मौलिक हक नहीं दे सकते तो हमसे तो बेहतर शायद तालिबान ही है.<BR/>ये मुलायम सिंह जैसे भक्षक नारी का अपमान करके संविधान का अपमान करके प्रधानमंत्री बन्ने के सपने देखते हैंऔर हम और आप उन्हें साकार करने में मदद देते हैं. एक दिन अपमान करके जब बात सबको पता चलती है तो विशेष स्थान बताते हैं. अरे इन फिल्म स्टारों को मुंबई में बैठ के सब सुन्दर दिखता है, कभी मुलायम सिंह सरकार या किसी भी इस तरह की सरकार के शासन में आके देखा है की लोग कितने डरे हैं, मैंने अंग्रेजी हुकूमत नहीं देखि लेकिन जैसे बुजुर्ग कहते हैं उससे लगता है की इतना तो हम उस समय भी डरे हुए नहीं थे. आज सच में हमें लोकतंत्र की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि लोकतंत्र की सबसे बड़ी कमी ये है की ये हमें बहुमत वाली सरकार दे सकती है मगर एक सच्ची सरकार नहीं. हमें आज नितांत ज़रुरत है एक सच्चे तानाशाह की जो हमारे संस्कारों, हमारी संस्कृति, हमारी जड़ों, विज्ञान और देश की प्रगति में भरोसा रखता हो, जो आतंकवादी और देशद्रोही ताकतों से डरता न हो. जिसके लिए देश परिवार की तरह हो और निजिस्वर्थों से प्रेरित न हो. जो स्वयं देश का और देशवासियों का भला समझ सके और अपराधिओं को सही सजा सही समय पे दिला सके, जो अंकुश लगा सके देश की सबसे बड़ी समस्या जनसँख्या विस्फोट पे वो जनतंत्र में वोटबैंक के दर से कभी संभव नहीं है. एक ऐसा तानाशाह जो फैसला भारत के लिए ले हिन्दू के लिए नहीं, मुसलमान के लिए नहीं, किसी जाति, किसी समाज के लिए, किसी क्षेत्र के लिए नहीं. <BR/><BR/>इस परिप्रेक्ष्य में स्वर्गीय पंडित प्रदीप जी की पंक्तियाँ याद आती हैं की -<BR/>'रोती है सलमा रोती है सीता, रोती है आज कुरान और गीता.'<BR/>('आज के इस इंसान को ये क्या हो गया'- गीत से)<BR/>'डरती है हर पाँव की पायल आज कहीं हो जाये न घायल.<BR/>इनपे हमला हो सकता है, इनका कुछ भी खो सकता है.<BR/>कोई रक्षक नज़र न आये.<BR/>डंस लिया देश को ज़हरी नागों ने, घर को लगा दी आग घर के चिरागों ने.'<BR/><BR/>'अपना देश वो देश था भाई लाखों बार मुसीबत आयी, भाइयों ने जान गवाईं पर बहनों की लाज बचाई.<BR/>लेकिन अब वो बात कहाँ है? अब तो केवल घात यहाँ है.' (सभी 'आज के इस इंसान को...' गीत से)<BR/><BR/>लेकिन हमें चाहिए की स्वयं भागीदारी कर के हालात बदलें न की सिर्फ मूक निरीक्षक बने रहें.<BR/>वरना जिस देश में दुर्गा की पूजा होती थी, कल कला के नाम पर दुर्गा की अश्लील तस्वीरें बनी और हम खामोश रहे ( मैं सिर्फ कलाकारों से ये पूछना चाहता हूँ की अगर ये ही कला है दुर्गा को माँ नहीं अपनी माँ को दुर्गा समझ के पेंटिंग बनायें) और अब दुर्गा के साथ वो हो रहा है जिसकी दुर्भाग्य भी कल्पना नहीं कर सकता और हम अभी भी खामोश हैं.<BR/>ये khamoshee कितनी lambee है पता नहीं..........................dipak 'mashal'noreply@blogger.com