"नई कलम" परिवार दिन व दिन सम्रद्ध हो रहा है। आज आपके बीच भारतीय डाक सेवा के अधिकारी और वर्तमान में कानपुर मंडल के वरिष्ठ डाक अधीक्षक रूप में पदस्थ कृष्ण कुमार यादव को पढ़ें -
साहब पालिश करा लो
एकदम चमाचम कर दूँगा
देखता हूँ उसकी आँखों में
वहाँ मासूमियत नहीं, बेबसी है
करा लो न साहब
कुछ खाने को मिल जायेगा
सुबह ही पालिश किया जूता
उसकी तरफ बढ़ा देता हूँ
जूतों पर तेजी से
फिरने लगे हैं उसके हाथ
फिर कंधों से रूमाल उतार
जूतों को चमकाता है
हो गया साहब
उसकी खाली हथेली पर
पाँच का सिक्का रखता हूँ
सलामी ठोक आगे बढ़ जाता है
सामने खड़े ठेले से
कुछ पूड़ियाँ खरीद ली हैं उसने
उन्हीं गंदे हाथों से
खाने के कौर को
मुँह में डाल रहा है
मैं अपलक उसे निहार रहा हूँ।
- कृष्ण कुमार यादव
साहब पालिश करा लो
एकदम चमाचम कर दूँगा
देखता हूँ उसकी आँखों में
वहाँ मासूमियत नहीं, बेबसी है
करा लो न साहब
कुछ खाने को मिल जायेगा
सुबह ही पालिश किया जूता
उसकी तरफ बढ़ा देता हूँ
जूतों पर तेजी से
फिरने लगे हैं उसके हाथ
फिर कंधों से रूमाल उतार
जूतों को चमकाता है
हो गया साहब
उसकी खाली हथेली पर
पाँच का सिक्का रखता हूँ
सलामी ठोक आगे बढ़ जाता है
सामने खड़े ठेले से
कुछ पूड़ियाँ खरीद ली हैं उसने
उन्हीं गंदे हाथों से
खाने के कौर को
मुँह में डाल रहा है
मैं अपलक उसे निहार रहा हूँ।
- कृष्ण कुमार यादव
sundar bhav, laghu katha ki chand shabdon me prashansneeya prastuti.
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ...अच्छा लगा. कृष्ण कुमार जी की कविता बेहद प्रभावी हैं.
ReplyDeleteEk achhi kavita,, ye vishay achha hai. Sarkaar ke kaagazi prayason ke kaaran sab gadbad ho rahi hai gareeb aur adhik gareeb hote ja rahe hain aur ameer aur adbhik ameer .... yojnayen bas filon ki gulaam hain ..... aisee kavitayon ki aawashyakta hai
ReplyDeleteArun Adbhut
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पे कृष्ण कुमार यादव जी कविता पढ़ी ...अच्छी लगी...बधाई कृष्ण जी .....!!
ReplyDeletebhut acchi rachna
ReplyDeletegargi
कृष्ण कुमार यादव जी की रचनाएँ तमाम प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर अक्सर पढने को मिलती हैं. उनका रचना-संसार काफी समृद्ध है. यहाँ उनकी रचना पढना सुखद लगा..बधाई !!
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