Tuesday, February 17, 2009

उनका तो नाम बिकता है

उनका तो नाम बिकता है बाज़ार में
वो कुछ भी लिख दें छपना ही छपना है
बाज़ार ही कुछ ऐसा है

लोग तो यहाँ तक कहते हैं - आज की
डिमांड है जो उन्होंने लिखा है
किसी फ़िल्म के साथ उनका नाम जुड़ जाए
तो समझो हिट होनी ही होनी है
चाहे तुकबंदी क्यों न हो या
शब्द चीख - चीख कर दम तोड़ रहे हों

सुना था जुगाड़ से सरकार चलती है
मगर यहाँ तो ज़िन्दगी और संघर्ष के
मायने ही बदल रहे हैं
कीमती पत्रिकाओं के चिकने पन्ने
उन्हें छपने की होड़ में लगे हैं, और
परदे के पीछे हिसाब हो रहा है
किसने कितना कमाया ?

मगर आज इन्हीं नाम बिकने वालों के बीच में
एक जोशीली नई कलम
अपने उभरते हस्ताक्षर छोड़ के आयी है
वो कवि नहीं है , जेब खाली है , पढने में संघर्षरत है
आज नामों के बाज़ार में
अपनी भावनाएं छोड़ आया है

और पल पल सोचते हुए कि
छपेगा - नहीं छपेगा
एक नया नाम उजाला पाने के लिए
क़दम -दर - क़दम बढाये जा रहा है .....

- शाहिद "अजनबी"

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