नहीं होगा असर उन पर कभी आंसू बहाने से
ये शामे ग़म भी ढलती है कहीं दिल के जलाने से
हुजूमे ग़म से घबराकर तू ऐ दिल आह न भरना
तुझे हँस कर उठाना है अताए ग़म जमाने से
तुझे हँस कर उठाना है अताए ग़म जमाने से
तेरी काफिर निगाहें भी मुजस्सिम हैं क़यामत की
ये बाज़ आए नहीं हुस्ने बुताँ बिजली गिराने से
ये बाज़ आए नहीं हुस्ने बुताँ बिजली गिराने से
मैं बादा कश नहीं यारो मगर ये कैफ छाया है
ग़मे जानाँ को दिलबर दिलनशीं अपना बनाने से
बहक जाएँ न हम साक़ी कहीं मय के पिलाने से
"जलील" ऐसी ग़ज़ल छेड़ो की वो मजबूर हो जाएँ
सुना है वो नहीं आए सरे महफ़िल जमाने से
- अब्दुल जलील
RACHANAA KE BHAV ACHHE HAI
ReplyDeleteBADHAAYEE
ARSH
नहीं होगा असर उन पर कभी आंसू बहाने से
ReplyDeleteये शामे ग़म भी ढलती है कहीं दिल के जलाने से
कुछ ऐसा ही है मुहब्बत में.
ग़ज़ल में बड़ी खुबसूरत रवानी है.
बहुत खूब साहब बहुत खूब
मुबारक हो.
शाहिद "अजनबी"
नहीं होगा असर उन पर कभी आंसू बहाने से
ReplyDeleteये शामे ग़म भी ढलती है कहीं दिल के जलाने से
कुछ ऐसा ही है मुहब्बत में.
ग़ज़ल में बड़ी खुबसूरत रवानी है.
बहुत खूब साहब बहुत खूब
मुबारक हो.
शाहिद "अजनबी"
बहुत ख़ूब जनाब!!!
ReplyDeleteबस एक गुज़ारिश है कि ग़ज़ल में कुछ मुश्किल लफ्ज़ भी आ जाते हैं, हो सके तो इनका मतलब ग़ज़ल के आखिर में दे दें.
साभार
हमसफ़र यादों का.......
हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया.
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