बहुत ही सरल तरीके से सीधे दिल में उतर जाने वाली बात कहने वाले मुखर कवि जतिंदर 'परवाज़' का नई कलम पर आगाज़ देखिये-
गुमसम तनहा बैठा होगा
सिगरट के कश भरता होगा
उसने खिड़की खोली होगी
और गली में देखा होगा
ज़ोर से मेरा दिल धड़का है
उस ने मुझ को सोचा होगा
सच बतलाना कैसा है वो
तुम ने उस को देखा होगा
मैं तो हँसना भूल गया हूँ
वो भी शायद रोता होगा
ठंडी रात में आग जला कर
मेरा रास्ता तकता होगा
अपने घर की छत पे बेठा
शायद तारे गिनता होगा.
जतिंदर 'परवाज़'
गुमसम तनहा बैठा होगा
सिगरट के कश भरता होगा
उसने खिड़की खोली होगी
और गली में देखा होगा
ज़ोर से मेरा दिल धड़का है
उस ने मुझ को सोचा होगा
सच बतलाना कैसा है वो
तुम ने उस को देखा होगा
मैं तो हँसना भूल गया हूँ
वो भी शायद रोता होगा
ठंडी रात में आग जला कर
मेरा रास्ता तकता होगा
अपने घर की छत पे बेठा
शायद तारे गिनता होगा.
जतिंदर 'परवाज़'
bahut hi utkrasht rachna, sach me ekdam sapat shabdon me dil ki gahrai tak pahunchane wali baat kah di. pahle laga ki 'chahat desh se ane wale, ye to batao sanam kaise hain...' se kafi milte bhav hain lekin ye male version hai aur sachchai ke jyada kareeb lagta hai. badhai...
ReplyDeleteWaah !! Bahut khoob.
ReplyDeleteआसपास से शब्दों को उठाकर क्या खूब रची है रचना.
ReplyDeleteएक सच्चाई को लफ्जों में बहुत खूब पिरोया है.
हाँ -हाँ ऐसा होता है.
शाहिद "अजनबी"