बहुत दिनों से आलोक उपाध्याय "नज़र" साहब को पढने का मौका नहीं मिल पा रहा था, आज इक नई रचना के साथ हमारे बीच में आइये लुत्फ़ लें-
कुछ उजला कुछ धुंधला सा हैदिल का मौसम बदला सा है
जब उलझे तब तब समझे
जीवन एक मसला सा है
तेरी मेरी हालत एक तरहलोग कहें तू पगला सा है
नम आँखों की लाख वजह
दिल का दुःख पिघला सा है
"गए लोग कुछ ले आयेंगे"
देखो तो दिल बहला सा है
दिलोदिमाग़ की जंग है ये
कुछ न कुछ घपला सा है
तुम आने वाले हो शायद
देखो रस्ता उजला सा है
- आलोक उपाध्याय "नज़र", इलाहबाद
( लेखक सॉफ्टवेर इंजीनियर हैं )
- आलोक उपाध्याय "नज़र", इलाहबाद
( लेखक सॉफ्टवेर इंजीनियर हैं )
जब उलझे तब तब समझे
ReplyDeleteजीवन एक मसला सा है
bahut badhiya Alok ji.. ghapla jaise shabdon ka pryog naya aur achchha laga..
bhut khub
ReplyDeleteshabdar