Monday, November 4, 2019

नफरतों के नाम

Shilpi Chaudhary जी की रचना , आज के समाज की नफ़रतों के नाम 

आज के नफ़रतों के समाज में मुहब्बत घोल दी आपने , याद रहे कोशिशें कभी नकामयाब नहीं होती।

तुम्हारे बुर्के और मेरी साडी में मीटरों का ही फ़र्क़ है
वरना उसके नीचे तो तुम और मैं एक से हैं
एक सा दर्द हर बात का
ये भी आज तुम्हे बताना पड़े तो
रही न तुम एक "औरत "ही
जिसे बताता आया है जमाना
तब से अब तक
जब लुटी एक औरत 
तो औरत ही लुटी
हिन्दू या मुसलमान
 ये तय बाद में हुआ
जब जन्मा किसी को
तो माँ ही बनी
हिन्दू या मुसलमान
ये तय बाद में हुआ
जब विदा हुई तो एक बेटी ही थी
कंगन खुले या आरसी मूसफ 
ये तय बाद में हुआ
जब मरी ....... तब भी औरत ही थी
जली या गड़ी
ये तय बाद में हुआ
और पैदा भी तुम औरत ही हुई
हिन्दू या मुसलमान
ये तय बाद में हुआ
फिर आज मेरी बहन हम 
लिबासों से अलग हो गए
ये  कब तय हुआ.......
शिल्पी
#हमएकहै
#No2HateYes2Love
 पोस्ट करिये एकता पर कोई शेर,कविता,फोटो या पोस्टर,,,टैग कर के सिलसिला आगे बढ़ाइए,,,फैलाइये एकता के संदेश को दूर तक

4 comments:

  1. आह..।
    सच में शानदार... बहुत ही बढ़िया रचना।
    औरत औरत होती है और यही इनका मज़हब है बाकी सब ढकोसले हैं।

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  3. बहुत ही बढ़िया रचना :)

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