Wednesday, April 29, 2009

"निरूतर लौटे संदेश सभी "


सीमा गुप्ता की मर्मस्पर्शी एक और रचना आपको जरूर पसंद आयेगी-

सूनी लगती है ये धरती...
अगन ये नभ बरसाता है

तुमको खोजे कण कण में

ये मन उद्वेलित हो जाता है...
अरमानो के पंख लगा

एक स्पर्श तुम्हारा पाने कों सेंध लगा

रस्मो की दीवारों मे दिल बैरागी हो जाता है.....

हर आस सुलगने लगती है

उम्मीद बोराई जाती है

ये कसक है या दीवानापन

सुध बुध को समझ ना आता है...
पानी की बूंदों से बाँचे

और पवन के रुख पे साजों डाले

निरूतर लौटे वो संदेश सभी

हर प्रयास विफल हो जाता है...

1 comment:

  1. taswwr aur gkavita ek sath mil ke bahut kuchh kah jate hain, anki khamoshi aur bebasi ke anokhe mishran se nikli ek bemisal rachna.

    ReplyDelete