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Monday, August 17, 2009

नया नहीं बन पाया तो...

नया नहीं बन पाया तो सम्बन्ध पुराना बना रहे,
आखिर जीने की खातिर कोई बहाना बना रहे,
सच कहती हूँ कभी नहीं मैं तुमसे कुछ भी चाहूँगी,
बस बेगानी बस्ती में इक ठौर ठिकाना बना रहे.
सहन कभी क्या कर पायेगी मेरे दिल की आहट यह,
तुम बेगाने हो जाओ, गुलशन गुलज़ार ये बना रहे.
सुबह देर से आँखें खोलीं मैंने केवल इसीलिए,
बहुत देर तक इन आँखों में, इक ख्वाब सुहाना बना रहे.

'बीती ख़ुशी'

Sunday, August 9, 2009

ग़ज़ल

लहू पहाड़ के दिल का, नदी में शामिल है,
तुम्हारा दर्द हमारी ख़ुशी में शामिल है.
तुम अपना दर्द अलग से दिखा न पाओगे,
तेरा जो दर्द है वो मुझी में शामिल है.

गुजरे लम्हों को मैं अक्सर ढूँढती मिल जाऊँगी,
जिस्म से भी मैं तुम्हे अक्सर जुदा मिल जाऊँगी.
दूर कितनी भी रहूँ, खोलोगे जब भी आँख तुम,
मैं सिरहाने पर तुम्हारे जागती मिल जाऊँगी.
घर के बाहर जब कदम रखोगे अपना एक भी,
बनके मैं तुमको तुम्हारा रास्ता मिल जाऊँगी.
मुझपे मौसम कोई भी गुज़रे ज़रा भी डर नहीं,
खुश्क टहनी पर भी तुमको मैं हरी मिल जाऊँगी.
तुम ख्यालों में सही आवाज़ देके देखना,
घर के बाहर मैं तुम्हें आती हुई मिल जाऊँगी.
गर तसब्बुर भी मेरे इक शेर का तुमने किया,
सुबह घर कि दीवारों पर लिखी हुई मिल जाऊँगी.

'बीती ख़ुशी'