अब उस शै का लौटना नामुमकिन है
वो शै जिसे मुहब्बत कहते हैं
वो तो निकल गया
जैसे लहरें
साहिल पे पड़े किसी पत्थर से मिलती हैं
मैं देख रहा हूँ अनजान मंजिल की तरफ
बढ़ते उस अताह तलातुम को
इन मौजों के शोर और जोश में
मैं अपने पुराने वाकये देख रहा हूँ
जरा देख तो सही मेरे अक्स को इस बहते पानी में
क्या वो मैं ही हूँ
जो कुछ लम्हा पहले दिखता था
मौज के वो कतरे जिन पे दिखता था मैं
मेरा अक्स उभरा था
वो तो कब के आगे बढ़ गए
मैं सोच रहा हूँ
मैं वो ही हूँ या नहीं ,गुमान है इसका
मैं वहीँ खडा हूँ , हाँ , इसका यकीन है
वो आगे जाने वाली लहर
शायद पिछले से मेरे
साथ रहने की सिफारिश कर गयी है।
- नरेन्द्र त्रिपाठी
वो शै जिसे मुहब्बत कहते हैं
वो तो निकल गया
जैसे लहरें
साहिल पे पड़े किसी पत्थर से मिलती हैं
मैं देख रहा हूँ अनजान मंजिल की तरफ
बढ़ते उस अताह तलातुम को
इन मौजों के शोर और जोश में
मैं अपने पुराने वाकये देख रहा हूँ
जरा देख तो सही मेरे अक्स को इस बहते पानी में
क्या वो मैं ही हूँ
जो कुछ लम्हा पहले दिखता था
मौज के वो कतरे जिन पे दिखता था मैं
मेरा अक्स उभरा था
वो तो कब के आगे बढ़ गए
मैं सोच रहा हूँ
मैं वो ही हूँ या नहीं ,गुमान है इसका
मैं वहीँ खडा हूँ , हाँ , इसका यकीन है
वो आगे जाने वाली लहर
शायद पिछले से मेरे
साथ रहने की सिफारिश कर गयी है।
- नरेन्द्र त्रिपाठी