Showing posts with label तमन्ना. Show all posts
Showing posts with label तमन्ना. Show all posts

Monday, August 17, 2009

क्षणिकाएं

जमीं से आसमां बहुत दूर है,
फिर मिलते से नज़र आते क्यों हैं,
जब गिराने ही होते हैं मुकीमों को वो सारे मकाम,
तो आसमां से मिलते मंजरों को बनाते क्यों हैं?

अपने आप को खुद से छिपाए बैठे हैं,
हम तो दर्द को भी दिल में दबाये बैठे हैं.
जो अपने दर्द से प्यार किया हमने
तो लोग कहते हैं,
हम किसी और से दिल लगाये बैठे हैं.

नफरत हमें छू न सकी,
प्यार को हम सम्हाल न सके.
इक तुम्हारे बिछड़ जाने के डर से,
हम हकीकत बयां कर न सके.
मैंने अपनों को सिर्फ दोस्त समझा,
वो जाने क्या क्या समझ बैठे.
इसमें मेरी खता क्या है ऐ मालिक,
जो हम दोस्ती को खुदा समझ बैठे.

- तमन्ना