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Thursday, June 4, 2009

"वक़्त की लाचारी"


हाँ वो लाचार वक़्त हूँ मैं

छटपटाता हुआ बदहवास सा

ठहरा हूँ मै तब से

दो दिलो के वादों का

साक्ष्य बना था जब से

व्याकुल हो विरह में

अश्कों डुबे सिसकते

एक दिल न कहा था

" जब अंत समय आये और

ये सांसे बोझ बन जाये

एक बार मुझसे कह देना

मै भी साथ चलूँगा ..."
उस रिश्ते पर मेरा ही

कफ़न पड़ गया शायद

अब मै गुजर जाना चाहता हूँ

मुक्त हो जाना चाहता हूँ
साक्ष्य के उस बोझ से

काश मेरे सीने से कोई

उस लम्हे के अंश को

चीर के जुदा कर दे

हाँ वही लाचार वक़्त हूँ मै .....


- सीमा गुप्ता

Friday, May 8, 2009

"बारिशों ने घर बना लिए "

यादें तेरी अश्रुविहल हो

असहाय कर गयीं,
आँखों मे कितनी
बारिशों ने घर बना लिए,
गूंजने लगा ये मौन.......
तुझको पुकारने लगा।
व्यथित हो सन्नाटे ने भी
सुर से सुर मिला लिए,
बिखरने लगे क्षण प्रतीक्षा के,
अधैर्य हो गयी
टूटती सांसो ने,
दुआओं मे तेरे ही
हर्फ सजा लिए ............
- सीमा गुप्ता

Wednesday, April 29, 2009

"निरूतर लौटे संदेश सभी "


सीमा गुप्ता की मर्मस्पर्शी एक और रचना आपको जरूर पसंद आयेगी-

सूनी लगती है ये धरती...
अगन ये नभ बरसाता है

तुमको खोजे कण कण में

ये मन उद्वेलित हो जाता है...
अरमानो के पंख लगा

एक स्पर्श तुम्हारा पाने कों सेंध लगा

रस्मो की दीवारों मे दिल बैरागी हो जाता है.....

हर आस सुलगने लगती है

उम्मीद बोराई जाती है

ये कसक है या दीवानापन

सुध बुध को समझ ना आता है...
पानी की बूंदों से बाँचे

और पवन के रुख पे साजों डाले

निरूतर लौटे वो संदेश सभी

हर प्रयास विफल हो जाता है...

Saturday, March 28, 2009

मधुर एहसास

चंचल मन के कोने मे
मधुर एहसास ने
ली जब अंगडाई,
रेशमी जज्बात का आँचल
पर फैलाये देखो फलक फलक...

खामोशी के बिखरे ढेरो पर
यादों के स्वर्णिम प्याले से
कुछ लम्हे जाएँ छलक छलक...

अरमानो के साये से उलझे
नाजों से इतराते ख़्वाबों को
चुन ले चुपके से पलक पलक...

ये मोर पपीहा और कोयल
सावन में भीगी मस्त पवन
रास्ता देखे कब तलक तलक...

रात के लहराते पर्दों पे
नभ से चाँद की अठखेली
छुप जाये देके झलक झलक...

- सीमा गुप्ता

Monday, March 9, 2009

तुम चाहो तो

एक अधूरे गीत का
मुखडा मात्र हूँ,
तुम चाहो तो
छेड़ दो कोई तार सुर का
एक मधुर संगीत में
मै ढल जाऊंगा ......
खामोश लब पे
खुश्क मरुस्थल सा जमा हूँ
तुम चाहो तो
एक नाजुक स्पर्श का
बस दान दे दो
एक तरल धार बन
मै फिसल जाऊंगा......

भटक रहा बेजान
रूह की मनोकामना सा

तुम चाहो तो
हर्फ बन जाओ दुआ का
ईश्वर के आशीर्वाद सामै फल जाउंगा.....

राख बनके अस्थियों की
तिल तिल मिट रहा हूँ
तुम चाहो तो
थाम ऊँगली बस
एक दुलार दे दो
बन के शिशु
मातृत्व की ममता में
मै पल जाऊंगा .....

- सीमा गुप्ता

Saturday, February 14, 2009

एक शाम और ढली

सीमा गुप्ता की कविता " एक शाम और ढली "

राह पे टकटकी लगाये ..
अपने उदास आंचल मे
सिली हवा के झोकें ,
धुप मे सीके कुछ पल ,
सुरज की मद्धम पडती किरणे,
रंग बदलते नभ की लाली ,
सूनेपन का कोहरा ,
मौन की बदहवासी ,
तृष्णा की व्याकुलता,
अलसाई पडती सांसों से ..
उल्जती खीजती ,
तेरे आहट की उम्मीद ,
समेटे एक शाम और ढली ....

- सीमा गुप्ता