जीवन का सत्य मरण में है
बाक़ी सब कुछ विचरण में है ,
जो उदय हुआ वो अस्त भी है
पागल मानव तो व्यस्त ही है
एक हवा भी आएगी इक दिन
ले जायेगी साँसे भी इक दिन
ये भवन छोड़कर चल दोगे
होगा भू कम्पन भी इक दिन
ये स्वार्थ स्वार्थ का खेल सनम
ये व्यर्थ व्यर्थ का प्रेम सनम
कुछ मिला नहीं कुछ मिलेगा क्या
आ साहिल पे संग बैठे हम !