Wednesday, September 16, 2009

ग़ज़ल

ज़रा सी देर में दिलकश नजारा डूब जायेगा
ये सूरज देखना सारे का सारा डूब जायेगा
नजाने फिर भी क्यों साहिल पे तेरा नाम लिखते हैं
हमें मालूम है इक दिन किनारा डूब जायेगा
सफ़ीना हो के हो पत्थर हैं हम अंजाम से वाक़िफ़
तुम्हारा तैर जायेगा हमारा डूब जायेगा
समन्दर के सफ़र में क़िस्मतें पहलू बदलती हैं
अगर तिनके का होगा तो सहारा डूब जायेगा
मिसालें दे रहे थे लोग जिसकी कल तलक हमको
किसे मालूम था वो भी सितारा डूब जायेगा

-जतिन्दर परवाज़

चित्रांकन- दीपक 'मशाल'

बाबू जी, कृपया टिप्पणी दे दीजिये...

3 comments:

  1. वाह बहुत खुब। लाजवाब रचना। बधाई

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  2. जतिन्दर परवाज़ साहब की रचना पढ़कर आनन्द आ गया.

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  3. बहुत खूब ....हर लफ्ज़ बेहतरीन

    नजाने फिर भी क्यों साहिल पे तेरा नाम लिखते हैं
    हमें मालूम है इक दिन किनारा डूब जायेगा

    हमारी तरफ बधाई स्वीकारें ....

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