Sunday, January 3, 2010

ग़ज़ल


दिल में याद लिए तेरी बैठा हूँ मैं
फ़क़त तसव्वुर में तेरे दुनिया भुलाये बैठा हूँ मैं

खंजर सी तेरी नज़रें वो हुस्न कातिलाना
अंजामे वफ़ा के जख्म लिए बैठा हूँ मैं

इक तबस्सुम की खातिर सौ जिल्लतें सही हैं
उजड़े हुए गुलशन में ख़ार लिए बैठा हूँ मैं

तेरे हुस्न मुजस्सिम को मैं अब कहाँ छिपाऊं
शबे हिज्राँ में दिल चाक किये बैठा हूँ मैं

रहमत का तेरी साइल मगर मुफलिस नहीं हूँ मैं
टूटे हुए पलकों के गौहर लिए बैठा हूँ मैं

कश्ती को पार कर दे ऐ नाखुदा तू मेरी
अताए ग़म का समंदर लिए बैठा हूँ मैं

कहीं शिर्क हों न जाए ऐ आरजुए परस्तिश
तस्वीर तेरी दिल में सजाये बैठा हूँ मैं

कोई उनसे जाके कह दे ये हाले दिल "जलील"
सब कुछ लुटा बर्बाद हुए बैठा हूँ मैं


- अब्दुल जलील


2 comments:

  1. खंजर सी तेरी नज़रें वो हुस्न कातिलाना
    अंजामे वफ़ा के जख्म लिए बैठा हूँ मैं
    तेरे हुस्न मुजस्सिम को मैं अब कहाँ छिपाऊं
    शबे हिज्राँ में दिल चाक किये बैठा हूँ मैं

    रहमत का तेरी साइल मगर मुफलिस नहीं हूँ मैं
    टूटे हुए पलकों के गौहर लिए बैठा हूँ मैं
    किस किस शेर की तारीफ करूँ सभी लाजवाब हैं बधाई

    ReplyDelete