Sunday, April 11, 2010

3 चुटकियाँ------->>>दीपक 'मशाल'

१-
अक्स धुंधला पड़ा है मेरा
खो सा गया हूँ मैं
जाने क्या-क्या ख्वाहिश लिए
सो सा गया हूँ मैं..
वो हर घड़ी मुझे
गैर किये जाते हैं
मोहब्बत देखे वगैर
वैर किये जाते हैं..
२-
अपनी तो आदत है समझो, तुमको चिढ़ाने की
कभी तुमको सताने की कभी तुमको हंसाने की
कहने को कह दूँ दोस्त तुमको अपनी जान से प्यारा
मगर हर रिश्ते को नाम देने की आदत है ज़माने की

3-
ऐ मेह्ज़बीं ऐसा नहीं कि हमें तुमसे प्यार नहीं
खता है वक़्त की के हमें मौका नहीं मिलता
तुम्हें पता नहीं कि दुनिया में और भी हैं ताजमहल
पर दिल से निकलने का उन्हें मौका नहीं मिलता

दीपक 'मशाल'
पिक. खुद निकाले गए

5 comments:

  1. अच्छी कविताएँ!
    यह मौका नहीं मिलने के फेर में बहुत प्यार दफ्न हो गए हैं।

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  2. बहुत उम्दा रचनायें तीनों ही.

    जब बैर पल जाये दिलों में तो मोहब्बत दिखती कहाँ है.

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  3. बहुत ही लाजवाब ।

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  4. मोहब्बत किये बगैर वैर किये जाते हैं.....बहुत खूब...तीनो रचनाएँ काबिले तारीफ़....

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