Friday, December 31, 2010

कह दो पापा "बहादुर बच्चे"


ये कविता मेरे पिता के लिए है जिन्होंने इस महीने की 11 तारिख को दुनिया छोड़ दी!

वो छोड़ गए अपनी यादें वो छोड़ गए अपनी बातें उनका अहसास है अब तो मेरे साथ क्यों रूठ गए हैं आप आज
इतना
कि मनाना भी अब नहीं कम आएगा
आसमान में तारा बनके क्या देख रहे हैं आप आपके बच्चे बुलाते हैं आपको
पापा
जाईये एक बार कि
हम
एक बार आपसे कह लें
अपने
दिल कि बात
आपके बिना अधूरा है जीवन माँ कि आँखें ढूंढती हें आपको जाओ पापा
फिर भले ही रूठ जाना यहाँ आके
एक
बार कह दो पापा "बहादुर बच्चे"
फिर नहीं चाहिए किसी का साथ
होगी
मुलाकात आपसे
किसी
किसी रूप में
ये
अहसास है हमको हम इंतज़ार करेंगे
उस
पल का जब तक हमारी आँखें
आपका
रास्ता ताकती रहेंगी !!

- शिखा वर्मा "परी" , कानपुर
(कवियत्री इंजीनियरिंग के दूसरे वर्ष में अध्यनरत हैं )

Monday, December 20, 2010

पापा मेरे पापा


इस मंच की कवियत्री शिखा वर्मा "परी" ने अपना ग़म साझा किया हमारे साथ, वो ग़म मैं अपने पाठकों के साथ साझा कर रहा हूँ-

"धूप सी जमी है मेरी साँसों में, कोई चाँद को बुलाये तो रात हों" मुझे नहीं मालूम था कि इतना मजबूर कर देगा मुझे मेरा जीवन कि अपने हाथों से अपने पिता कि चिता को आग दूँगी और अपनी माँ से कहूँगी कि मैं तो जश्न में गयी थी।(जिस दिन पापा हम सब को छोड़ के गए उसी दिन मम्मी को , सात दिन अस्पताल में आई .सी. यूं. चेंबर में रहने के बाद छुट्टी मिली थी, और अब तक वो अपने पूरे होशो हवाश में नहीं हैं वो दिमाग की इक बीमारी से पीड़ित हैं और डॉक्टर ने मना किया है उनको इस घटना के बारे में बताने को )
पिता को खोने का ग़म करूँ या माँ को पाने का अहसास पता नहीं ये कौन सी परीक्षा है मेरी, आज पापा की कमी महसूस होती है जब जेब से पैसे निकल के कॉलेज भाग जाया करती थी, अपने जन्मदिन पर नया लेपटोप की जिद की थी। अपना मनपसंद भोजन बनवाने का मन होता था,पापा के साथ शान से गाड़ी में घूमती थी। और पूछती थी- "ये कौन सी जगह है पापा? " पुराने गाने पापा के साथ गुनगुनाते थे, उनके "कालू" कहने पर रूठ जाया करते थे और मन ही मन हँसते थे। वाकई पिता की याद को भुला पाना पानी में आग जलने का काम है।

11 दिसंबर 2010 मैंने अपने पिता को खो दिया, उनके हाथों का साया मेरे सर से हट गया। पापा की कमी का अंदाजा कोई लगा नहीं सकता, उनका प्यार से कहना "सूतू मेरा" कैसे भूल जाऊँ ? उनकी डांट, उनका प्यार, उंसी हिम्मत, पापा की हर एक बात मुझे अपनी सांस के साथ आती है। 21 वर्ष में अपने पापा को खो दिया मैंने, ऐसा ईश्वर ने मेरे साथ क्यूं किया? इस सवाल का जवाब ढूंढ रही हूँ मैं, मुश्किल है जवाब मिलना पर फिर भी उम्मीद है कि शायद किसी न किसी दिन जवाब मिलेगा।

मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया, हर फिक्र को धुंए में उड़ाता चला गया, बरबादियों का सोग मानना फिजूल था, बरबादियों का जश्न मनाता चला गया।

- शिखा वर्मा "परी"
( लेखिका इंजीनियरिंग के दूसरे वर्ष में अध्यनरत हैं )

17th dec 2010.

Friday, December 17, 2010

इक तमन्ना


कहते हैं की मुहब्बत में बड़ी ताक़त होती है , मुहब्बत क्या करा दे, पिछले दिनों ऐसे ही इक जनाब से मुलाकात हों गयीनयी ज़िन्दगी के कुछ नए तजुर्बे, मुहब्बत की शक्ल में नमूदार कर दिएआज ऐसी ही इक नयी कलम से आपका तारुफ़ करा रहा हूँहाई इस्कूल में अध्यनरत छोटी सी उम्र और उम्र से बड़े अल्फाज़ लिए वो हमारे बीच में, आईये लुत्फ़ लें नज़्म का-

रो रहा है ये दिल, आज तुमको रुला के
कैसे चुप करूँ आज, तुमको मना के
शायद ये ज़िन्दगी, भरी है गलतियों से आज
तुम भी मान जाओ हमें अपना बना के
इस दिल की तमन्ना सुन सको
तो सुन लो
ये ज़िन्दगी है तुम्हारी
बस इतना समझ लो
हमने भी गलतियाँ की हैं इक इंसान की तरह
तुम भी हमें माफ़ कर दो भगवान की तरह
ये दोस्त खड़ा है
तुम्हें अपना बनाने को
तुम भी पास जाओ इसे गले लगाने को
अब लौट आओ - लौट आओ
फिर इस ज़िन्दगी में
इक नयी दोस्ती की शुरुआत करते हैं
तुम मुझे याद करो
हम तुम्हें याद करते हैं.........

- अभिषेक जायसवाल