कहते हैं नज़्म किसी भी वजह से लिखी जा सकती है कोई इसकी जगह मुक़र्रर नहीं, कोई वक़्त भी तय नहीं। उम्र में सबसे छोटी , इस मंच की कवियत्री और उनकी ये रचना जो उन्होंने सिटी बस में लिखी। आप सुधि पाठकों साथ साझा कर रहा हूँ। आपके प्यार का मुन्तजिर रहूँगा-
न कोई अपना है
न कोई पराया है
जिसके नाम से
ज़िन्दगी शुरू की थी
वो आज इक साया है
भीड़ में ढूँढने गयी थी खुद को
जो बिक गया वो मेरा साया है
छोड़ के आयी जिनको
दुनिया की खातिर
वो आज मुझसे पराया है
खुद को तन्हा छोड़ दिया मैंने
जिसकी खातिर
आज उसी को ख़फा पाया है
क्यूँ ढूंढते हों मुझे
दुनिया के बाज़ार में
मैंने कब से छोड़ दिया
इस अजनबी शहर को
जो अब मुझसे पराया है।
- शिखा वर्मा "परी"