Sunday, January 29, 2012

मुख पर मुखौटा

 ऐ ... रूचिका तेरी वो बीमार हैं। नविता ने कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए
कहा। वो कौन... साफ-साफ क्यों नहीं बतलाती? अरे वही तेरी लख्ते जिगर,
तेरी रोल माडॅल। उनकी बीमारी की खबर ने रूचिका को झकझोर दिया। अपनी बात
पूरी करते हुए नवीता ने कहा कि कल शाम जब मैं बाजार से वापस आ रही थी तो
वे अपने पति के साथ हास्पिटल में दाखिल हो रहीं थी।

वे मतलब डा0 वीणा वर्मा। बेहद तेज समाजशास्त्री। कालेज में अपने विषय पर
उनसा पकड़ शायद ही किसी का हो। आदर्शवादी। कल्चरल प्रोग्राम हो या सेमिनार
उनकी मौजूदगी के बिना सब बेकार। पिछले साल एन. एस. एस. कैम्प के दौरान
’टूटते संयुक्त परिवार’ विषय पर सम्पन्न वाद-विवाद प्रतियोगिता की वह
निर्णायक थीं, जिसमें रूचिका ने अव्वल स्थान पाया था।

रूचिका डॉ0 वीणा वर्मा के व्यक्तित्व से इतना प्रभाावित हुई की, कब वह
उनकी व्यावहारिक शिष्या बन गयी, पता न चला। उसे पूरी तरह याद है कि महिला
विस पर बतौर मुख्य अतिथि श्रीमती वर्मा ने ’महिला उत्पीड़न’ विषय पर बोलते
हुए किस तरह समाज के ठेकेदारों का बखिया उखेड़ा था। हर पहलू पर समान
दृष्टिकोण से संयमित लहजे में नारी पर हो रहे अत्याचार पर व्याख्यान
प्रस्तुत कियाद। हेज उत्पीड़न, हत्या, बलात्कार, कन्या भ्रूण हत्या, अंग
प्रदर्शन व उनके पिछड़ेपन जैसे तमाम पहलूओं पर सूक्ष्म दृष्टिपात किया।
महिलाओं की व्यथा व उनकी अन्तर्कथा पर खूब बोलीं। कुछ मामलों में तो
उन्होने खुद औरतों को दोषी ठहराया। मसलन कन्या भ्रूण हत्या।

नवीता से उनकी बीमारी की खबर पाकर रूचिका उनके घर की जानिब मुखातिब हुई।
रास्ते भर ढ़ेर सारी कल्पनाओं के तालाब में हिमखण्डों की माफिक उसके जेहन
में तैर रही थीं, उनका व्याख्यान, मृदुस्वभाव, महिलाओं के प्रति तटस्थता
आदि। उनके घर पहुंचते ही वह उनका कोमल स्पर्श देगी। उनका हाथ अपने हाथ
में लेकर पूछेगी, कैसी हैं मैडम? अगर सर दुःख रहा हो तो सहला दूं। अभी
कल्पनाओं का संसार खत्म भी नहीं हुई थी कि डॉ0 वीणा वर्मा का घर आ गया।
अचानक रूचिका की तन्द्र टूटी। आहिस्ता से उसने मैडम का कॉलबेल बजाया।
..... कुछ पल के बाद दरवाजा खुला। एक महिला ने अन्दर से झांक कर पूछा....
कौन? जी मैं... मैडम घर पर हैं? अन्दर आइए, मैडम अभी हास्पिटल में ही
हैं। क्या हुआ है उनको, सोफे पर बैठते हुए रूचिका ने पूछा? महिता सकुचाते
हुए बोली... हुआ क्या है बस, पानी भरा गिलास रूचिका की तरफ बढ़ाते हुए
उसने कहा। रूचिका उसकी तरफ सवालिया नजर से देखती रही। अचानक हकीकत उसके
जुबान से लरज उठी। उनको पहला लड़का है, अब फिा दिन चढ़ गये थे। सोनोग्राफी
में लड़की निकली। और वे सफाई ...। उन्हे इस बार भी बेटा चाहिए था।
पूरी बात सुनकर रूचिका के हाथ से गिलास टूट कर रेजा-रेजा हो गया। गिलास
टूटने के साथ ही मैडम के आदर्शों के प्रति उसकी श्रद्धा भी चकनाचूर हो
गई। आस्था की प्रतिमा यथार्थ से टकराकर बिखर गयी। मुख के भीतर का मुखैटा
नुमाया हो गया। बोझिल कदमों से रूचिका ढ़हते खण्डहर की तरह यथार्थ के रेत
पर मिटते निशान छोड़ते हुए वापस घर चली आयी।

- एम. अफसर खां सागर

Sunday, January 22, 2012

आकांक्षा यादव को मानद डाक्टरेट की उपाधि

      विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार के सोलहवें महाधिवेशन में युवा कवयित्री, साहित्यकार एवं चर्चित ब्लागर आकांक्षा यादव को मानद डाक्टरेट (विद्यावाचस्पति) की उपाधि से विभूषित किया गया। आकांक्षा यादव को मानद डाक्टरेट की इस उपाधि के लिए उनकी सुदीर्घ हिंदी सेवा, सारस्वत साधना, शैक्षिक प्रदेयों, राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में महनीय शोधपरक लेखन के द्वारा प्राप्त प्रतिष्ठा के आधार पर अधिकृत किया गया। उज्जैन में आयोजित कार्यक्रम में उज्जैन विश्वविद्यालय के कुलपति ने यह उपाधि प्रदान की।

गौरतलब है कि आकांक्षा यादव की रचनाएँ देश-विदेश की शताधिक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित हो रही हैं। नारी विमर्श, बाल विमर्श एवं सामाजिक सरोकारों सम्बन्धी विमर्श में विशेष रूचि रखने वाली आकांक्षा यादव के लेख, कवितायें और लघुकथाएं जहाँ तमाम संकलनों /पुस्तकों की शोभा बढ़ा रहे हैं, वहीं आपकी तमाम रचनाएँ आकाशवाणी से भी तरंगित हुई हैं। पत्र-पत्रिकाओं के साथ-साथ इंटरनेट पर भी सक्रिय आकांक्षा यादव की रचनाएँ तमाम वेब/ई-पत्रिकाओं और ब्लॉगों पर भी पढ़ी-देखी जा सकती हैं। व्यक्तिगत रूप से ‘शब्द-शिखर’(http://shabdshikhar.blogspot.com) और युगल रूप में ‘बाल-दुनिया’ (http://balduniya.blogspot.com
),‘सप्तरंगी प्रेम’ (http://saptrangiprem.blogspot.com) व ‘उत्सव के रंग’ (http://utsavkerang.blogspot.com) ब्लॉग का संचालन करने वाली आकांक्षा यादव न सिर्फ एक साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं, बल्कि सक्रिय ब्लागर के रूप में भी उन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। ’क्रांति-यज्ञ: 1857-1947 की गाथा‘ पुस्तक का कृष्ण कुमार यादव के साथ संपादन करने वाली आकांक्षा यादव के व्यक्तित्व-कृतित्व पर वरिष्ठ बाल साहित्यकार डा0 राष्ट्रबन्धु ने ‘बाल साहित्य समीक्षा‘ पत्रिका का एक अंक भी विशेषांक रुप में प्रकाशित किया है।

मूलतः उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और गाजीपुर जनपद की निवासी आकांक्षा यादव वर्तमान में अपने पतिदेव श्री कृष्ण कुमार यादव के साथ अंडमान-निकोबार में रह रही हैं और वहां रहकर भी हिंदी को समृद्ध कर रही हैं। श्री यादव भी हिंदी की युवा पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर हैं और सम्प्रति अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएँ पद पर पदस्थ हैं। एक रचनाकार के रूप में बात करें तो आकांक्षा यादव ने बहुत ही खुले नजरिये से संवेदना के मानवीय धरातल पर जाकर अपनी रचनाओं का विस्तार किया है। बिना लाग लपेट के सुलभ भाव भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें यही आपकी लेखनी की शक्ति है। उनकी रचनाओं में जहाँ जीवंतता है, वहीं उसे सामाजिक संस्कार भी दिया है।

इससे पूर्व भी आकांक्षा यादव को विभिन्न साहित्यिक-सामाजिक संस्थानों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। जिसमें भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ’भारती ज्योति’, ‘एस0एम0एस0‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार, इन्द्रधनुष साहित्यिक संस्था, बिजनौर द्वारा ‘साहित्य गौरव‘ व ‘काव्य मर्मज्ञ‘, श्री मुकुन्द मुरारी स्मृति साहित्यमाला, कानपुर द्वारा ‘साहित्य श्री सम्मान‘, मथुरा की साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘आसरा‘ द्वारा ‘ब्रज-शिरोमणि‘ सम्मान, मध्यप्रदेश नवलेखन संघ द्वारा ‘साहित्य मनीषी सम्मान‘ व ‘भाषा भारती रत्न‘, छत्तीसगढ़ शिक्षक-साहित्यकार मंच द्वारा ‘साहित्य सेवा सम्मान‘, देवभूमि साहित्यकार मंच, पिथौरागढ़ द्वारा ‘देवभूमि साहित्य रत्न‘, राजेश्वरी प्रकाशन, गुना द्वारा ‘उजास सम्मान‘, ऋचा रचनाकार परिषद, कटनी द्वारा ‘भारत गौरव‘, अभिव्यंजना संस्था, कानपुर द्वारा ‘काव्य-कुमुद‘, ग्वालियर साहित्य एवं कला परिषद द्वारा ‘शब्द माधुरी‘, महिमा प्रकाशन, दुर्ग-छत्तीसगढ द्वारा ’महिमा साहित्य भूषण सम्मान’, अन्तर्राष्ट्रीय पराविद्या शोध संस्था,ठाणे, महाराष्ट्र द्वारा ‘सरस्वती रत्न‘, अन्तज्र्योति सेवा संस्थान गोला-गोकर्णनाथ, खीरी द्वारा ’श्रेष्ठ कवयित्री’ की मानद उपाधि, जीवी प्रकाशन, जालंधर द्वारा ’राष्ट्रीय भाषा रत्न’ इत्यादि शामिल हैं।

विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार के इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न भागों में कार्यरत हिन्दी सेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि, विभिन्न विश्वविद्यालयों के विद्वान, शिक्षक-साहित्यकार, पुरातत्वविद्, इतिहासकार, पत्रकार और जन-प्रतिनिधि शामिल थे। उक्त जानकारी विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ के कुल सचिव डा. देवेंद्र नाथ साह ने दी।

दुर्गविजय सिंह ’दीप’
उपनिदेशक - आकाशवाणी (समाचार)
पोर्टब्लेयर, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह

Thursday, January 12, 2012

मेरा हमसफ़र

एक बार फिर कौशल सा'ब का कलाम आपकी आँखों  में सरमाया करना चाहता हूँ क़ुबूल करें .. आपकी दुआओं का तलबगार रहूँगा..

आधा छूटा हुआ जाम
खुली हुई किताब
रिन्दों का साथ
फिर भी अकेला हूँ
याद आती है वो याद
जिनमें  मैं जवाँ हुआ         
क्या कहूं?
उस रात की बात
मेरा हबीब मुझसे जुदा हुआ
वो हसीं लम्हे,
उनकी जुल्फों का साथ
उनके झुमके की खनक
वो बिंदिया  की चमक
अँधेरे में उजाला देने वाली
याद आती है वो याद
जिनमें मैं जवाँ हुआ
क्या करूँ?
कैसे मिटाऊँ उनकी याद
उनका हमसफ़र जो बदल गया 

- कौशल किशोर, कानपुर

http://dilkikashmakash.blogspot.com/
( और गहराई से इनको यहाँ पढ़ा जा सकता है)