दोस्तों आज पूरे दो साल हो गए उस लम्हे को जिसमे इस ब्लॉग को पंजीकृत किया गया था. सोच रहा हूँ इस दूसरे जन्मदिन पर आप सबको वो कहानी सुना ही दी जाये जो इस नाम 'नई कलम-उभरते हस्ताक्षर' के नाम के उद्भव से जुड़ी हुई है. कब से दिल में छुपा के रखे हूँ इस बात को और देखिये ना हमेशा कहने का सोचता रहा पर वक़्त के घोड़े की रफ़्तार पीछे छूट गए माजी के किले देखने के लिए मुड़ने नहीं दे रही थी. पर आज बताना जरूरी समझा तो कह दे रहा हूँ..
बात तबकी है जब हम.. हम मतलब मैं और मेरे अज़ीज़ दोस्त जनाब मोहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी' उस उम्र में थे जब घर में आलू की सब्जी बना रही मम्मी से सब्जी में पानी डालने से पहले अपने खाने के लिए सूखे आलू निकालने की जिद कर बैठते या करेले, लौकी, कद्दू, टिंडे जैसे नामों से ही चिढ़ा करते थे. हाँ उसी लड़कपन या किशोर उम्र की बात कर रहा हूँ मैं.. मैंने और शाहिद भाई ने तब इंटरमीडिएट पास किया ही था, अब जैसा कि आप जानते ही हैं कि जब कोई छात्र कॉलेज ज्वाइन करता ही है तब अपने आप को दुनिया का बादशाह समझता है.. उसे लगता है कि उसके लिए कोई भी काम नामुमकिन नहीं. वो साहित्य की डोर ही थी जो हम दोनों को जोड़ती थी वर्ना मैं जीव विज्ञान का विद्यार्थी था और शाहिद गणित के.समरलोक, हंस, कथादेश पढ़ते-पढ़ते और टूटी-फूटी कविता, शायरी, कहानी, लेख लिखते हुए हमें अहसास होने लगा था कि हम साहित्यकार नहीं तो उसकी दुम जरूर हो गए हैं. बस एक दिन तैश में दोनों ने अमर उजाला और दैनिक जागरण जैसे अखबारों में ख़ास ख़त और पत्र कॉलम के लिए पत्र लिख के डाल दिए.. थोड़े से अंतराल के बाद हम दोनों के पत्रों को ही ये दोनों अखबार प्रकाशित करने लगे. बस फिर क्या था.. बन गए हम साहित्यकार.
अब जब खुद कुछ बन गए(अपनी नज़र में) तो सोचा कि क्यों ना कोई ऐसा मासिक साहित्यिक अखबार निकला जाए जो स्थापित के साथ-साथ नए रचनाकारों की रचनाओं को प्राथमिकता देकर उन्हें प्रोत्साहित करे.. सोचा कि नाम क्या रखा जाए??? काफी सोच विचार कर तय हुआ कि 'नई कलम-उभरते हस्ताक्षर' नाम मकसद के अनुरूप खूब जाँच रहा है और बस फिर क्या था भाई, बनने लगे बड़े-बड़े हवाई किले और इसमें हमने एक बेचारे कम्प्युटर प्रशिक्षण केंद्र के मालिक जो कि हमारी ही उम्र का था, को भी शामिल कर लिया. लगे उस बेचारे को भी खूब जमके अस्तित्वविहीन कैनवास पर आभासी प्रोजेक्टर से सुनहरे भविष्य की फिल्म दिखाने. अखबार के इस तीसरे शेयर होल्डर का नाम आशुतोष अग्रवाल था और सच में हम हमेशा इस सहयोग के लिए उसके आभारी रहेंगे.
तो प्रथम संस्करण में २०० समाचार पत्र निकालने का फैसला लिया गया. जिले भर से युवा और वरिष्ठ साहित्यकारों की रचनाएं ली गयीं.. खुद ही एडिटिंग भी की और इस तरह एक ८ पेज का साहित्यिक अखबार बनकर, छपकर तैयार भी हो गया. बात जब उसे बाज़ार में लाने की आयी तो सबसे पहले कुछ लोगों को मुफ्त में दिए गए और बहुत थोड़े ने शायद खरीदा भी. पर अगर किसी से उसका वार्षिक या आजीवन सदस्य बनने को कहते तो वो पहले हमें ऊपर से नीचे तक देखता और फिर मुस्कुरा कर सिर हिला देता. अब ये बात हमें भले ना समझ में आ रही हो पर वो समझ रहे थे कि कल को ये बच्चे अपना-अपना कैरियर बनाने में लग जायेंगे और हमारे पैसे तो गए.. फिर भी रो धो कर किसी तरह हमने २ अंक तक अखबार को खींचा पर उसके बाद दम फूलने लगा. हमारे तो ५-५०० रुपये लगे थे पर वो बेचारा कम्प्यूटर्स एंड प्रिंटर्स वाला तो लुट-पिट गया ना. सोच रहा था कि किस मनहूस घड़ी में इन मंजे हुए साहित्यकारों पर भरोसा कर लिया.. :) अब होना क्या था योजना खटाई में....... अजी खटाई में नहीं बल्कि.. खटाई के मर्तबान में पड़ के सील हो गई.
इसके बाद शाहिद बाबू अपनी पढ़ाई में लग गए और मैं अपनी में.. करते करते शाहिद बन गया इंजीनियर और मैं पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद दिल्ली के एक संस्थान में रिसर्च प्रोजेक्ट से जुड़ गया. बात फिर से चालू हुई तब जब मैं रिसर्च को आगे बढ़ाते हुए यहाँ बेलफास्ट, उत्तरी आयरलैंड(यूं.के.) आ पहुंचा.. तब तक शाहिद भाई ने भी कहीं जॉब ज्वाइन कर ली थी. जैसे ही कुछ स्वावलंबी हुए नहीं के साहित्य का कीड़ा फिर शीतनिद्रा(हाईबरनेशन) से निकल कर बाहर आ गया. किसी तरह मैंने अन्य दोस्तों से शाहिद का नंबर लिया और बात की तो साहित्य ने मुझे ब्लॉग के बारे में बताया... तो मैंने पूछा ''भाई ये क्या 'बला' है?'' और जब मैंने अपनी रचनाओं को दुनिया के सामने लाने का यह मंच देखा तो बस पूछिए ही मत दिल कितना ऊपर उछल कर छत से जा टकराया (तब से लेकर आज तक सर पर ब्लॉग नाम का गूमड़ पड़ा हुआ है). शाहिद जे ठहरे इंजीनियर बताया कि ''भाई हमारा 'नई क़लम-उभरते हस्ताक्षर' अबकी ब्लॉग के रूप में फिर से जिन्दा हो गया है''.. जिस दिन इस ब्लॉग की नींव राखी गई वो आज ही का शुभ दिन था यानी १८ मई २००८, बस तबसे लेकर अब तलक कई अच्छा लिखने वाली कलमों, साहित्य के उभरते हस्ताक्षरों को इस मंच पर आमंत्रित किया.. सभी का भरपूर प्यार मिला(और आगे भी मिलता रहेगा). बीच में हुआ ये कि शाहिद जी अपने काम में कुछ ज्यादा ही मशगूल हो गए. 'नई कलम-उभरते हस्ताक्षर' के अलावा मैंने भी एक स्वतंत्र ब्लॉग रूपी पौधारोपण किया जिसे आप लोग निरंतर अपने स्नेह और आशीर्वाद से सींच ही रहे हैं.
अभी तक जिनकी रचनाएं इस मंच पर प्रकाशित हुईं उन साथियों के शुभ नाम हैं-
सुनील उमर
जल्द ही ये ब्लॉग एक वेबसाईट के रूप में आपको हिन्दी की सेवा में तत्पर करता दिखेगा पर उसके लिए आपके प्यार और सहयोग की नितांत आवश्यकता है. इसी श्रंखला के तहत हिन्दी ब्लॉग की दुनिया के कुछ सक्षम हस्ताक्षरों को एक साथ, एक पुस्तक के रूप में सबके सामने लाने का प्रयास चल रहा है, जो ऊपरवाले की कृपा से जल्दी ही आपके हाथों में होगा.
आज इस खुशी के दिन मैं आप सबसे एक बार पुनः अपने इस चहेते ब्लॉग को सक्रिय सहयोग देने का अनुरोध करता हूँ.
आपके
शाहिद 'अजनबी' एवं दीपक 'मशाल'
(आपको जानकर खुशी होगी कि हिन्दी ब्लोगिंग के जानेमाने पॉडकास्टर श्री गिरीश बिल्लौरे जी ने अपने प्रिय साथियों के अनुरोध पर ब्लोगिंग में पुनः वापस आने के लिए हाँ कर दी है और शीघ्र ही वो पुनः सक्रिय दिखेंगे.. उनका तहेदिल से स्वागत किया जाए)
याने यह तो बहुत पुराना पोधा है जिसका पुनः जीर्णोद्धार हुआ है सो बरस पहले.
ReplyDeleteवाह जी, पार्टी की बात तो है...चीयर्स!!
बहुत बहुत बधाई और अनेक शुभकामनाएँ. सफलता की ओर यूँ ही कदम बढ़ाते चलें.
गिरीश बिल्लोरे जी ने ब्लागीरी में वापस आने की हाँ करदी ये खुश खबर है. लेकिन वे गए कब थे?
ReplyDeleteमुबारक हो. वो न सही ये सही. साहित्य की सेवा जिस तरह से की जाये अच्छा. सराहनीय प्रयास है.
ReplyDeleteबिल्लोरे की वापिसी (जाने का पता नहीं) का स्वागत
पहले तो आप दोनों को बधाई. आशा करती हूँ आपका सपना सच हो
ReplyDeletebahut badhai is nayi purani si shuruaat ke liye...shubhkaamnayein...
ReplyDeleteवाह दीपक ,
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई हो भाई । एक साथ बहुत सारी खशखबरियां दे दी तुमने तो । भविष्य के लिए शुभकामनाएं भाई ।
सार्थक सोच की अभिव्यक्ति / अनेक शुभकामनायें /
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा प्रयास है , बधाई । श्रंखला को श्रृखंला कर लें ।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई हो आप दोनो को और गिरीश जी को भी वापसी पर शुभकामनायें।
ReplyDeleteअरे वाह ....ये तो बहुत ही अच्छी बात बताई तुमने...बहुत बहुत बधाई और मुझे यकीन है आपलोगों के सपने जरुर पूरे होंगे .हाँ मुझ नौसिखिया को भी शामिल कर लो अपनी लिस्ट में :) हा हा हा .
ReplyDeleteवैसे लिखा जबरदस्त्त है ...एक सांस में पढ़ गई पूरा.बेहद रोचक तरीके से.
बहुत बहुत बधाई दीपक...और अनेकों शुभकामनाएं
ReplyDeletewah, badhiya, badhai aur shubhkamnayein,,,
ReplyDeletegillore ji ko to aana hi tha, bloging ka chaska aisa hi hai, jate hai na aane ke liye lekin aate hi hain, ham khud 5 month tak blog par nahi likhe lekin fir laute halanki koi ghoshhna nahi kiye the ki ja rahe hain vidai le rahe hain bla bla, lekin laute aur likh hi rahe hain, so yaha aane wale jate nahi, jate hai to laut kar aana hi hota hai
bhai bahut intresting kahaani rahi is blog ki to ..... varshgaanth ki shubhkamnayen .. :)
ReplyDeletedipakji aapke jeevan ki bahut si baaten humen blog par hi milti hain ! aapko bahut bahut badhai evam shubh-kaamnayen aage bhi yah mashal yun hi jalti rahegi..... kabhi na bujhne baali
ReplyDeleteaapke mitra mo bhi main badhai dena chahta hoon jo unhone aapko blog-jagat ke baare main bataaya aur vah bhi is kshetar se fir se jud gaye
बहुत बहुत बधाई.....और भविष्य के लिए शुभकामनायें
ReplyDeleteहिम्मत की दाद देनी होगी यार। एक मैं हूँ हवाई किले बनाकर गिराता रहता हूँ, शायद अच्छा वक्त नहीं आया, किलों को हकीकती रूप देने का, चलो जो होता है अच्छे के लिए होता है, आपने यत्न किया, यत्न करना ही साहस है, वरना क्या?
ReplyDeleteबस आप सभी के स्नेह ने लौटा लिया है मुझे आभार
ReplyDeletehttp://sanskaardhani.blogspot.com/2010/05/blog-post_18.html
वाह जी! बधाई
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई हो
ReplyDeleteतुम लोगों के प्रयास कभी बेजा न जाएँ यही कामना है.........
ReplyDeleteशुभकामनाओं के साथ आशीर्वाद
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
हा हा हा
ReplyDeleteमजा आ गया :)
हार्दिक बधाई
आपका पोस्ट लिखने का तरीका बहुत पसंद आया :)
बहुत शुभकामना आप दोनों को, हमारा सहयोग सदा आपके साथ है!
ReplyDeleteबधाईयां जी बधाईयां
ReplyDeleteएक पार्टी तो बनती है:) चीयर्स
bahut bahut badhaai
ReplyDeleteसाहित्य की मशाल दीपक के अजनबी हाथों से पूरी दुनिया को रौशन करे, यही दुआ है...
ReplyDeleteजय हिंद...
तहेदिल से आप सबका अपने इस ब्लॉग की जन्मदिन पार्टी में पधारने पर शुक्रिया अदा करता हूँ..
ReplyDeletebahut bahut badhai aur anek shubhkamnaye .
ReplyDeleteyshsvi bno
Congrats! Sir You Did a Great Work ............
ReplyDeleteभाई पार्टी में हांफता दौड़ता आ पहुंचा हूँ ये सोच कर की कुछ बचा खुचा तो पड़ा मिल ही जायेगा...आ कर निराशा नहीं हुई...तुम में जन्म जात लेखन की प्रतिभा कूट कूट कर भरी पड़ी है इसमें अब कोई शक नहीं रहा...लच्छे दार भाषा में जो तुमने ब्लॉग जन्म की कहानी सुनाई है वो निहायत ही दिलकश और दिलचस्प है...बहुत बहुत बधाई...तुम्हारी किताब वाला सपना भी जल्द ही पूरा हो ये ही इश्वर से कामना करता हूँ...शाहिद मियां जो अब अजनबी नहीं रहे अगर कहीं मिल जाएँ तो हमारी तरफ से उनकी पीठ भी थपथपा दीजियेगा...
ReplyDeleteनीरज