मैं तो ठहरा वृक्ष बबूल का, मुझ पर कोयल क्यों कूकेगी ?
वो कूकेगी आम्र वृक्ष की शाखाओं पर, मृदु किसलयों की ओट में खुद को छिपलाकर
क्या तनिक उसे ये भान नहीं, एक दिन वो हरित डाल भी सूखेगी ?
मैं तो ठहरा वृक्ष बबूल का, मुझ पर कोयल क्यों कूकेगी ?
मेरे शूलों का स्नेह त्याग, औ' बैठ वहां, छेड़ती विहग राग
मुझे दर्प में ठुकराया पर, एक दिन ये स्वर लहरी भी तो रूखेगी
मैं तो ठहरा वृक्ष बबूल का, मुझ पर कोयल क्यों कूकेगी ?
फल न दे पाऊ मैं भले, मगर जलने को तन तो दे सकता हूँ
प्रीत की खातिर मुझे बचाने तब, क्या बार बार वो फूकेगी ?
मैं तो ठहरा वृक्ष बबूल का, मुझ पर कोयल क्यों कूकेगी ?
- जय नारायण त्रिपाठी
वो कूकेगी आम्र वृक्ष की शाखाओं पर, मृदु किसलयों की ओट में खुद को छिपलाकर
क्या तनिक उसे ये भान नहीं, एक दिन वो हरित डाल भी सूखेगी ?
मैं तो ठहरा वृक्ष बबूल का, मुझ पर कोयल क्यों कूकेगी ?
मेरे शूलों का स्नेह त्याग, औ' बैठ वहां, छेड़ती विहग राग
मुझे दर्प में ठुकराया पर, एक दिन ये स्वर लहरी भी तो रूखेगी
मैं तो ठहरा वृक्ष बबूल का, मुझ पर कोयल क्यों कूकेगी ?
फल न दे पाऊ मैं भले, मगर जलने को तन तो दे सकता हूँ
प्रीत की खातिर मुझे बचाने तब, क्या बार बार वो फूकेगी ?
मैं तो ठहरा वृक्ष बबूल का, मुझ पर कोयल क्यों कूकेगी ?
- जय नारायण त्रिपाठी
No comments:
Post a Comment