Sunday, April 18, 2010
ब्लॉगवुड को सांप्रदायिक दंगों की नींव बनने से रोकें ब्लोग्वानी, चिट्ठाजगत और अन्य एग्रीगेटर------>>>दीपक 'मशाल'
बहुत दिनों से अपने आप को रोकने की कोशिश में लगा था कि जैसा चल रहा है चलने दो दुनिया के अन्य विभागों की तरह यहाँ ब्लॉग विभाग में भी हर तरह के लोग हैं उन्हें झेलना ही पड़ता है और यहाँ भी झेलना पड़ेगा. लेकिन अबअपनी ही लिखी एक कविता की पंक्तियाँ-
''के हदें हदों की ख़त्म हुईं..
देखो अब धैर्य भी छलका है.
खूंखार हुए कौरव के शर..
गांडीव तेरा क्यों हल्का है.''
याद आने लगीं हैं. देखा जाए तो दोनों पक्षों से ही ये अनर्गल वार्तालाप हो रहे हैं लेकिन जब से इस ब्लॉगवुड में अनवर ज़माल और सलीम खान जैसे लोग आये हैं तब से तनाव जैसी स्थिति बढ़ती ही जा रही है. इनकी बकवास और बेहूदा तर्कों से तो यही साबित होता है. आज की तारीख में सलीम खान और अनवर जमाल से देश की अखंडता, सांप्रदायिक सद्भावना और अमन, चैन को जितना खतरा है उतना ही ब्लोगवाणी या दूसरे अन्य संकलकों को भी. क्योंकि यदि निकट भविष्य में इनके ज़हरीले और बेसिर-पैर के विश्लेषण से दंगा-फसाद की स्थिति बनती है तो कानून के हाथों द्वारा कॉलर इन एग्रीगेटर की भी पकड़ी जाएगी.
ना तो इन धार्मिक अनपढ़ों को कुरआन का क आता है और ना वेद का व लेकिन फिर भी ये स्वघोषित विद्वान बने हुए हैं. सिर्फ अनुवाद की भाषा समझते हैं मर्म की नहीं, संवेदना की नहीं. ऊपर से इनके ५-६ चमचे जो कि बिलकुल धर्मांध और मुस्लिम समाज के नाम पर कलंक हैं बराबर इनको पीछे से समर्थन दे रहे हैं. वैसे इन शैतानों की संख्या ज्यादा नहीं है लेकिन अपने लिए इन्होने कई हिन्दू और मुस्लिम नामों से फर्जी आई.डी. बना रखी हैं. पता नहीं ये सब जग ज़ाहिर होने के बाद भी ये संकलक क्यों इन आस्तीन के साँपों को प्रश्रय दिए हुए है, क्यों भीष्म की तरह चुपचाप तमाशा देख रहे हैं.
कभी ये इस्लाम के सन्देश को अपने हिसाब से बदल कर लोगों के सामने रखते हैं तो कभी वेदों और पुराणों को झुठलाने में लगे रहते हैं.. जिन पुस्तकों ने भारत को विश्वगुरु की पदवीं दिलाई उसे ये कल के चूहे झूठ, अनाचार और कदाचार का पुलिंदा साबित करने में लगे हैं. अभी कुछ दिन पहले ही धर्म-परिवर्तन को ही लक्ष्य बना रखा है और लोगों के सामने उन घटनाओं का बार-बार ज़िक्र कर रहे हैं जो किसी समुदाय विशेष की भावनाओं को भड़का कर गृहयुद्ध की स्थिति पैदा कर सकती हैं. बड़ी लागलपेट के साथ उन लोगों के तथाकथित साक्षात्कार प्रस्तुत कर रहे हैं जिनके होने ना होने से दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ता.
किस की दुहाई दे रहे हैं ये लोग? किसके नाम से डरा रहे हैं? अल्लाह के ईश्वर के या भगवान् के? अरे बेवकूफों वो रहीम है, वो करीम है, वो भगवान् है, दया सागर है, कृपाला हैं. तुम्हें क्या लगता है एक मंदिर या मस्जिद तोड़ देने से वो अपना कहर बरपायेगा? वो सिर्फ ये सब देख कर कहीं बैठ कर हंसेगा कि ''बच्चों!! तुम एक इमारत तोड़ कर समझते हो कि मेरा नाम मिट जाएगा? अरे तुम सम्पूर्ण पृथ्वी, इस सृष्टि को भी मिटा दोगे तब भी मेरा नाम ना मिटा पाओगे.'' और येही वो खूबी है जो उस सर्वशक्तिमान को इंसानी सोच से अलग करती है. तुमने तो मजाक बना कर रख दिया.. कहते हो उसका कोई रूप नहीं, कोई रंग नहीं... और सिद्ध ये करते हो कि वह हमारी-तुम्हारी तरह सोचता है, बदले लेता है, खुश होता है. अजीब भ्रम में हो.
ये अनवर उलटे-सीधे विश्लेषण तो करता ही है लेकिन साथ में यह भी मानने को राज़ी नहीं कि उसका विश्लेषण गलत है और मनगढ़ंत है. आप सबने एक चुटकुला तो सुना ही होगा कि 'एक शराबी से शराब छुड़ाने के लिए किसी महामना ने उसके सामने एक गिलास में शराब डाली और एक कीड़ा डाल दिया, कुछ ही समय में कीड़ा मर गया तो उस शराबी से पूछा कि इससे क्या सबक मिला? तो शराबी बोलता है कि शराब पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं.''
ये इसी तरह की बेअकल सोच वाले लोग हैं.
''शठे शाठ्यम समाचरेत'' का मतलब भी ये मूर्ख के साथ मूर्ख का सा व्यवहार करना चाहिए बताएँगे ना कि दुष्ट के साथ दुष्टता का.
अमित शर्मा ने बहुत कोशिश की इन्हें समझाने की, सतीश सक्सेना जी ने की, एकाध बार मैंने भी की लेकिन ये अपनी आदत से मजबूर हैं. मना कि बहुसंख्यक समुदाय के कुछ लोग भी कभी-कभी इस तरह की अनर्गल और बेहूदा बातें करते हैं लेकिन वो कभी इतने आक्रामक नहीं होते ना ही फर्जी आइ.डी. बना कर किसी को धमकाते या टिप्पणी करते हैं(जैसा कि फिरदौस जी ने बताया).
अरे इतनी सी बात समझ नहीं आती कि यदि यही सर्वशक्तिमान की मर्जी थी जो ये लोग सोच रहे हैं तो सबको एक ही समुदाय में पैदा ना करते? हम कैसे उसकी मर्जी के खिलाफ जा सकते हैं वो तो खुद चाहता है कि विभिन्न तरीकों से मुझे याद करो पर करो तो, मुझे याद रखोगे तो मृत्यु का भय रहेगा, मृत्यु का भय रहेगा तो गलत काम नहीं करोगे और अनुशासन में रहोगे जिससे कि ये दुनिया जब तक अस्तित्व में रहेगी सुचारू रूप से चलती रहेगी.
बताना जरूरी समझता हूँ कि मेरे जो दो सबसे प्यारे भाई हैं उनके नाम मोहम्मद आज़म और अकबर कादरी हैं और इससे कम से कम मुझे तो कोई फर्क नहीं पड़ता. मेरे पापा के सबसे करीबी दोस्तों में से एक इंतज़ार चचा के साथ हमारे सालों से पारिवारिक सम्बन्ध हैं. आज भी याद है कि हमारे पारिवारिक मित्र और मेरे बाबा के गुरु स्वर्गीय श्री विशाल चच्चा कितने अपनेपन से दिवाली और होली पर कढ़ी-चावल, दाल, पापड़, चीनी और दही बड़े की कलौंजी घर आकर कितने हक से आज्ञा देकर मंगाते और खाते थे और ईद पर टिफिन भरके सिवईयां भेजते थे. नाजिम चच्चा की भैंसों का दूध पी-पीकर हम बड़े हुए लेकिन आज तक किसी ने किसी की आस्था पर चोट नहीं की. रोज़े की नमाज़ मैंने मस्जिद में पढ़ी तो सईद ने वजू बनाने के लिए मेरे हाथों, पैरों पर पानी डाला तो उसने भी देवी मूर्ति विसर्जन पर मेरे साथ प्रसाद बांटने में हाथ बंटाया और ये सब सलीम की तरह किसी अपराधबोध को लेकर नहीं किया बल्कि इंसानियत के धर्म को सबसे बड़ा मान कर किया. ये पोस्ट जिस ब्लॉग पर मैं डाल रहा हूँ वो भी मेरे दोस्त मोहम्मद शाहिद 'अजनबी' और मेरा साझा ब्लॉग है। वैसे कहने की जरूरत नहीं लेकिन जब ब्लॉग जगत में महफूज़ भाई, युनुस खान भाई, फिरदौस जी, शीबा असलम फहमी जी, शहरोज़ साब और कुछ अन्य ब्लोगर जैसे उदाहरण भी हैं तो उनसे कुछ क्यों नहीं सीखा जाता.
अंत में एक बार फिर ब्लोगवाणी, चिट्ठाजगत और अन्य ब्लोग संकलकों से अनुरोध करूंगा कि ऐसे ब्लोगों को बिलकुल पनाह ना दें जो यहाँ माहौल बिगाड़ने की कोशिश में लगे हैं और यदि कल के दिन मैं भी यही सब करता पाया जाऊं तो बिना समय गंवाए मुझे भी यहाँ से धक्के देकर निकाल दिया जाए.दीपक 'मशाल'
चित्र-गूगल से
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दीपक 'मशाल'
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साम्प्रदायिक सौहार्द्र बनाये रखने की जिम्मेदारी सबकी है.
ReplyDeleteसाप्रयास इसे कायम रखना चाहिये.
आपकी चिंता जायज है
बहुत दिनों से उहापोह में था कि इस विषय पर लिखूँ या नहीं। आप ने सार्थक मुद्दा उठाया है। पहले अवधिया जी ने उठाया था, फिरदौस ने उठाया और अब आप ... संकलकों को ध्यान देना ही चाहिए।
ReplyDeleteमाना कि मुफ्त सेवा है और लोग बाग छूट लेते हैं लेकिन इन सब ने तो सारी हदें पार कर दी हैं । संकलक न करें तो हम लोग तो बहिष्कार कर ही सकते हैं। सुना है कि गुगल की ब्लॉगर सेवा को भी पर्याप्त लोग बताएँ तो वे ऐक्सन लेते हैं। पाबला जी और उन जैसे तकनीकी ब्लॉगरों से निवेदन कर रहा हूँ कि इस बारे में कोई राह सुझाएँ। अब पानी सिर से उपर जा चुका है।
जी हां गिरिजेश जी आपने सही सुना है एक तरीका वो भी है और बहुत कारगर भी है < और भी हैं कई सारे , मगर सबसे पहले तो संकलंकों से ही आग्रह किया जाना चाहिए कि यदि पूरा ब्लोग का प्रतिबंध उचित न हो तो सिर्फ़ वैसी पोस्टों को जरूर ही आने से रोक देना चाहिए । सब कुछ अपने आप ही ठीक हो जाएगा ।
ReplyDeletenice
ReplyDeleteशायद अपने जीवन में पहला मौका होगा जब कि इन लोगों की वजह से मुझे ऎसे शब्दों का प्रयोग करना पड रहा है...वो ये कि किसी गन्दी नाली के गलीज कीडे से बढकर इन लोगो की औकात नहीं। बहुत दिनों से यही सब देखते समझते इतना तो साफ हो चुका है कि किसी बहुत ही गहरी साजिश के तहत ये लोग यहाँ जुटे हुए है। मियाँ जलील और अस्वच्छ सलीम ये दोनो तो इस गैंग के लीडर हैं जिनका काम है दूसरे की आस्था पर चोट पहुँचाना। और इन्ही के गैंग के दो चार जीशान हैदर और शाह नवाज जैसे लोग इधर उधर घूमकर इन लोगो की एवज में सफाईयाँ पेश करने में जुटे रहते हैं...बाकी तो पाँच सात कैराणवी फैराणवी जैसे उठाईगिरे साथ चिपके हाँ जी, हाँ जी करने में लगे रहते हैं...यानि कि इस षडयन्त्र को एक बहुत ही सुनियोजित तरीके से अन्जाम दिया जा रहा है...लेकिन अब वक्त आ गया है कि इन लम्पटों को निकाल बाहर किया जाए या फिर इनके खिलाफ कोई कानूनी कदम उठाया जाए.......
ReplyDeletenice2
ReplyDeletei object vats ji kairanavi uthaigira nahin hai,,,,,,,,kairanavi saand hai.....jo har kisi ke peechhe laal kapada samajh peechhe pada rahata hai....raham karo us par yaar
ReplyDeleteसहमत हूं मशाल जी
ReplyDeletemain bhi aap se sahmat hun....
ReplyDeleteदीपक भाई, एक समर्थन का स्वर मेरी तरफ से भी. लोग अपने अपने अन्दर झाँकने का कष्ट उठायें. मनुष्य जन्म एक बार मिलता है. लोग इसे व्यर्थ कर क्यों फिर से पशु बनने पर तुले हैं? अगर इतनी चिंता है सर्वशक्तिमान की तो उन्ही का ध्यान लगा कर बैठ जाएँ, अगर वो कहीं है तो उत्तर देंगे. अगर उत्तर नहीं मिलता तो कृपा करके नास्तिक बन जाएँ परन्तु उनका नाम लेकर विद्वेष न भड़काएं.बहुत सरल है उन्हें बुलाना. कर्म करिए, कुकर्म मत करिए. सुफल मिलेगा.
ReplyDeleteइस मुआमले में तो हम भी आपके तरफ़दार हैं मशाल साहब।
ReplyDeleteएक बहुत अच्छी पहल.... बक अप दीपक....
ReplyDeleteविचार करना होगा.
ReplyDeleteDeepak where can I see these two people's such activities?
ReplyDeleteजहर उगलने वालों का विरोध करना तो संकलकों का भी कर्तव्य होना ही चाहिये। हमारे विचार से अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का दुरुपयोग करने वालों का संकलकों में बने रहना कदापि उचित नहीं है।
ReplyDeleteआपके विचारो से सहमत हूँ ....आभार
ReplyDeletehindi mein 1 kahawat hai "laato ke bhoot baato se nahi samajhte" ....wahi haal inka hai...
ReplyDeleteaapne 1 achhi pahal ki hai....
बहुत ही सार्थक पहल...गंभीरता से सोचना चाहिए इस विषय पर और जरूरी कदम उठाने चाहिए
ReplyDeleteआपने अपने सुंदर विचार मे गिरी चिपलूँकर गोदियाल आदि को भूल गये
ReplyDeleteBhai Anonymous ji, jab maine khud ko hi shamil kar liya ki is tarah ki bakwas karne par mujhe bhi nikaal diya jaaye to fir bakimin kiski himayat kar sakta hon?
ReplyDeleteभाई जी आपकी यह बात बहुत अच्छी लगी, इस प्रकार वातावरण बहुत ही गंदा है।
ReplyDeleteआपका कहना बिल्कुल जायज है. कहावत भी है कि "अंधे के आगे रोये अपने नैन खोये". हम जानते है कि मुर्ख व्यक्ति को समझाया नहीं जा सकता. लेकिन मेरे को आश्चर्य इस बात का है कि समझदारों के भी अक्ल पर क्यों पत्थर पड़ गए है. कुछ हद तक पढ़ने वाले पाठक भी जिम्मेदार है इन अल्पज्ञानी लोगो को बेवजह शह देने के लिए. पाठकगण ये जानते हुए की कुछ ब्लॉग उनकी भावनाओ की चिंदी चिंदी कर रहे है, फिर भी क्यों उस ब्लॉग पर जाते है और क्यों इस तरह के पोस्ट पढते है.
ReplyDeleteकृपया इनपर भी विचार किया जाए :
ReplyDelete1. http://harf-e-galat.blogspot.com/
2. http://blog.sureshchiplunkar.com/2010/04/love-jihad-hindu-muslim-love-relations.html
3. http://bhandafodu.blogspot.com/2010/04/632.html
4. http://samrastamunch.blogspot.com/2010/04/blog-post_8884.html
shukriya impact ji, inhe bhi dekhta hoon.
ReplyDeleteसंवेदनशील पोस्ट ... माहॉल को ठीक रखने की ज़िम्मेवारी सब की है ....
ReplyDeleteब्लॉग जगत पर सांप्रदायिक उन्माद फैलाने की कोशिश करने वालों, जरा आकर तो देखो, आप कितने सही हैं ? अगर आप सही होते तो सबको इतना करने की जरूरत ही क्यों पड़ती ? अब भी अपने अच्छे पहलुओं को मान्यता दें, किसी की बुराई में खुद की भलाई भी हो तो उससे बचना चाहिए।
ReplyDeleteहमारा भी यही कहना है... नफ़रत की आग को फैलने से रोकना ही होगा...
ReplyDeleteआपने हमारा समर्थन किया है... उसके लिए हम आपके शुक्रगुज़ार हैं...
प्रिय भाई
ReplyDeleteकहीं कुछ तकनीकी गड़बड़ है दो तीन बार कमेंट लिखा और हर बार गायब हो गया। मैं यह कहना चाहता हूं कि साम्प्रदायिकता फैलाने वाले अपने लाभ के अनुसार साम्प्रदायिकता फैलाते हैं जो कम जम्मू कश्मीर वहाँ के अलगाववादी मुसलमान करते हैं वहीं उत्तर पश्किम भारत में हिन्दू साम्प्रदायिक दलों के साथ काम करने वाले साम्प्रदायिक संग्ठन करते हैं। उनके भोम्पू और उन भोंपुओं के चम्पू मिलकर ऐसा माहौल पैदा कर रहे हैं। जो प्रति साम्प्रदायिकता फैल रही है या तो उनकी ही उपजाई हुयी है या कुछ वे मूर्ख कर रहे हैं जो नहीं जानते कि अल्पस्ंख्यकों के हित में केवल धर्म निरपेक्षता ही होती है इसलिए ईमानदार, जनवादी, राजनीतिक चेतना सम्पन्न संगठनों को ताकत देकर ही बहुसंख्यक साम्प्रदायिकता का मुक़ाबला किया जा सकता है
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletedr. jamaal jaiso ko abhi bhi samajh jana chaiye in sabse kuch nahi hoga. pyaar badane ki honi chaiye jisse ki sab islaam se prem kare, is tarah to ye islaam ko bahut dur kar rahe h. amit bhai kitni shalinta se inki har ek baat ka jhuth mikaal rahe h
ReplyDeleteNice3
ReplyDeleteदीपक जी, आपसे पूरी तरह सहमत.
ReplyDelete@वीरेंदर जैन,
आप प्रतिसम्प्रदायिकता किसे कह रहे है. सलीम, कैरानवी, डा0 जमाल आदि द्वारा जो कुछ किया जा रहा है वह क्या प्रतिक्रियास्वरूप है ? कृपया स्पष्ट करें किस बात की प्रतिक्रिया हो रही है?
मैंने भी समझाया था... http://sulabhjaiswal.wordpress.com/2010/03/29/cyber-law-is-active-in-india/ कितने समझे पता नहीं...
ReplyDeleteशुक्र है कि अभी वीरेंद्र जैन जी जैसे लोग मौजूद हैं .
ReplyDeleteAnwar ji yahan koi aapke khilaaf nahin.. haan sirf ek kattarpanthee aur galat soch ke khilaaf hain jo aajkal aapne bana rakhi hai. agar koi bhi bematlab Quraan shareef ke bare me ooljalool baten karega to bhi mujhe utnee hi takleef hogi jitni is waqt ho rahi hai.
ReplyDeleteबिलकुल जमाल साहब. जब तक वीरेंदर जैन जी जैसे लोग मौजूद हैं, कोई माई का लाल आपको रोक नहीं सकता. लगे रहिये........
ReplyDeletebilkul sahi baat hai ye....
ReplyDeleteinpar rok lagni hi chahiye..
Dipak I am so proud of you..
vastv me is ke pichhe kisi shdyntr ki boo aa rhi hai
ReplyDeletedr. ved vyathit
यहाँ पर एक-दो बार मेरा नाम लिया गया है… अभी समय की कमी है लेकिन विरोध करने अवश्य आऊंगा… लेकिन जमाल या कैरानवी का नहीं (ये लोग तो………), वीरेन्द्र जैन साहब का… समस्या की असली जड़ जैन साहब जैसी मानसिकता वाले लोग ही हैं, जो तूफ़ान को देखकर रेत में सिर गड़ाये हुए शतुरमुर्ग बने हुए हैं…।
ReplyDeleteदीपक 'मशाल' बहुत सुंदर बात कही आप ने, इन सभी लोगो ने यहां पुरा महोल खराब कर दिया है, मै तो कभी नही जाता इस सब के ब्लांग पर, ओर ना ही इन्हे तव्ज्जो ही देता हुं, अगर इन्हे हम सब के संग रहना है तो यह भी आम आदमी की तरह से लिखे...
ReplyDeleteआप ने बिलकुल सही लिखा...ब्लोगवाणी, चिट्ठाजगत और अन्य ब्लोग संकलकों से अनुरोध करूंगा... मै आप से सहमत हुं