एक लड़की की कहानी ,लड़की की जुबानी , कहती हैं रुबीना फातिमा -
उसमें तिश्नगी भी है
उसमें ज़िन्दगी भी है
उसमें बंदगी भी है
क्योंकि वो लड़की है
वालदैन की फिक्र भी है
बहन का दर्द भी है
हमसफ़र की तड़प भी है
क्योंकि वो लड़की है
हाथ में छाले होश नहीं
रो - रो के ऑंखें लाल हुईं
ख़ुद से वो बेखबर सी है
क्योंकि वो लड़की है
इधर माँ के दर्द की कराह
उधर हमनशीं का पागलपन
न जाने कौन सी खलिश सी है
क्योंकि वो लड़की है
दुनिया से लड़ने को तैयार
क़दम - क़दम पे सिसकियाँ
मुस्कराहटों की जुस्तुजू सी है
क्योंकि वो लड़की है
नज़र बचाके कहाँ जाए
मुहब्बत से मामूर सीना कहाँ ले जाए
सरापा प्यार की पैकर सी है
क्योंकि वो लड़की है
क्रोशिया , फाउन्तैन, पेंटिंग
और क्या आता है तुम्हें
इन सवालों की झड़ि सी है
क्योंकि वो लड़की है
सर से ओढो दुपट्टा
घर से क़दम बाहर न निकालो
दिल में उठे तलातुम की लहर सी है
क्योंकि वो लड़की है
वो गज़लों की शान हुई
शायरों की ख्याल हुई
अदब में भी वो अदब सी है
हाँ है , वो लड़की है
- रुबीना फातिमा "रोजी"
उसमें तिश्नगी भी है
उसमें ज़िन्दगी भी है
उसमें बंदगी भी है
क्योंकि वो लड़की है
वालदैन की फिक्र भी है
बहन का दर्द भी है
हमसफ़र की तड़प भी है
क्योंकि वो लड़की है
हाथ में छाले होश नहीं
रो - रो के ऑंखें लाल हुईं
ख़ुद से वो बेखबर सी है
क्योंकि वो लड़की है
इधर माँ के दर्द की कराह
उधर हमनशीं का पागलपन
न जाने कौन सी खलिश सी है
क्योंकि वो लड़की है
दुनिया से लड़ने को तैयार
क़दम - क़दम पे सिसकियाँ
मुस्कराहटों की जुस्तुजू सी है
क्योंकि वो लड़की है
नज़र बचाके कहाँ जाए
मुहब्बत से मामूर सीना कहाँ ले जाए
सरापा प्यार की पैकर सी है
क्योंकि वो लड़की है
क्रोशिया , फाउन्तैन, पेंटिंग
और क्या आता है तुम्हें
इन सवालों की झड़ि सी है
क्योंकि वो लड़की है
सर से ओढो दुपट्टा
घर से क़दम बाहर न निकालो
दिल में उठे तलातुम की लहर सी है
क्योंकि वो लड़की है
वो गज़लों की शान हुई
शायरों की ख्याल हुई
अदब में भी वो अदब सी है
हाँ है , वो लड़की है
- रुबीना फातिमा "रोजी"
bebasi,majburi,lachari aur dil kya sochta hai.bahut khub bayan kiya hai
ReplyDeleteनज़र बचाके कहाँ जाए
मुहब्बत से मामूर सीना कहाँ ले जाए
सरापा प्यार की पैकर सी है
क्योंकि वो लड़की है
akhir ki panktiyan bahut khub hain...dheere - dheere nazm men jan aati gayi..
shahid"ajnabi"
सर से ओढो दुपट्टा
ReplyDeleteघर से क़दम बाहर न निकालो
दिल में उठे तलातुम की लहर सी है
क्योंकि वो लड़की है
BAAT TO SAHI HAI,
KANDHE SE KANDHE MILAKE,
KANDHE BHI CHIL DETI HAI,
MURJHAI HUI SHAAM TO BHAAGTI DOPAHAR SI HAI,
KYUNKI WO LADKI HAI.
बहुत ही अच्छी रचना लिखी है आपने ...क्योंकि वो लड़की है
ReplyDeleteRozi,
ReplyDeleteI have no diction for appreciation but will surely like to mention that there were tears in my eyes at the end of ur poem.
इधर माँ के दर्द की कराह
ReplyDeleteउधर हमनशीं का पागलपन
न जाने कौन सी खलिश सी है
क्योंकि वो लड़की है
" बस दिल कोएक हवा के झोंके की तरह छु गयी ये कविता.."
Regards
शाहिद जी ,क्यूँ की वोह लड़की है "को यहाँ शाया करने का बहुत बहुत शुक्रिया
ReplyDeleteरुबीना फातिमा "रोजी "
उसमें तिश्नगी भी है
ReplyDeleteउसमें ज़िन्दगी भी है
उसमें बंदगी भी है
क्योंकि वो लड़की है
sahi likha hai........ladki hi hai jisme har jajba hai jindagi ka jisko lekar wo sath chalti hai.
pahli baar apki kalam se ru-b-ru hui acha laga.
sakhi
बहुत खूब.....
ReplyDeleteसुशील गंगवार -
ReplyDeleteलाइट कैमरा एक्शन कपडे उतारो -----------
मुंबई मायानगरी हिंदी फिल्मो का स्वर्ग , जहा पर छोटे छोटे शहर से अपने सपनो को साकार करने के लिए लोग आते है . जिन्दगी कब पलट जाये और रातो रातो सुपरस्टार बन जाये. ऐसे ही सपनों को सजोकर रखने वाला आम इन्सान कब मुंबई के उजालो में गुम हो जाता है वह खुद नहीं जानता है . मुंबई की जिन्दगी दूसरे शहरो से थोड़ी सी अलग है . यहाँ की रफ्फ्तार बहुत तेज है . यहाँ रिश्ते नहीं पैसा चलता है .पैसो की खनक के सामने रिश्तो का कतल हो जाता है . .जेव में जब पैसा लोग पूछता है कैसा ?
फिल्म में काम पाने की लालसा में लड़के लडकिया अपने जिस्म का सौदा दलालों - प्रोडूसर , के कहने पर करते है. जब एक बार कपडे उतरने का सिलसिला शुरू होता है तो एक आम इन्सान फिल्म वालो की हाथ की कठपुतली बन जाता है उसकी डोर दलाल - प्रोडूसर ,डिरेक्टर के हाथ में होती है . जैसे वह चाहता है वैसे नाचता है. कुछ फिल्म वाले चुपके से ब्लू फिल्म बना लेते है और फिर ब्लैक मैलिंग की कहानी शुरू हो जाती है . गर फिल्म -टीवी सीरियल मोडेलिंग काम मिलने लगा तो गाडी लाइन पर आ जाती है, नहीं मिला तो ब्लू फिल्मो में काम करने का अवसर मिलता ही रहता है .
रोटी के फाके न पड़े , मज़बूरी में जिस्म बेचने के धंधे से लेकर ब्लू फिल्म का सफ़र ऐसे रास्तो पर लाकर खड़ा कर देता है जहा से घर का रास्ता कोसो दूर हो जाता है. एक कलाकार गुमनामी के अधेरे में खुद से डर डरकर रहने लगता है . इन लोगो दोस्त कम तो दुश्मन हजार होते है
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