5 मार्च को बड़ी मेहनत और मशक्कत के बाद राष्ट्रपिता बापू का ऐनक, घडी , विजय माल्या की मदद से , 9 करोड़ में ,प्राप्त करने में हम सफल हो गए . काश हमने ये 9 करोड़, बापू के दीनों , प्यारों पर खर्च किये होते तो बापू भी खुश होते. हम भारतीयों की खुशखबरी की खबर पर दीपक चौरसिया "मशाल" की कविता आपके समक्ष रख रहा हूँ -
और हम बहुत खुश हैं
की अब फिर से
वो सब हिन्दोस्तान की अमानत हैं,
एक ऐनक,
एक घडी,
और कुछ भूला बिसरा सामान।
हमें प्यार है,
हमें प्यार है इन सामानों से
क्योंकि ,
ये बापू की दिनचर्या का हिस्सा थे।
पर ऐसा करने से पहले,
दिल में बैठे बापू से
एक मशविरा जो कर लेते
तो बापू भी खुश होते।
ये वो ऐनक है जिससे,
बापू सब साफ़ देखते थे।
पर हम नहीं देख सकते साफ़ इससे भी
इससे हमें दिखेंगे
मगर दिखेंगे हिंदू , दिखेंगे मुसलमान,
दिखेंगे सवर्ण, दिखेंगे हरिजन ,
दिखेगी औरत, दिखेगा मर्द,
दिखेगा अमीर, दिखेगा गरीब,
दिखेगा देशी और विदेशी।
मगर शायद बापू इसी ऐनक से
इन्सान देखते थे
और बापू के आदर्शों कि बोली
इक पैसा भी लगा पाते,
तो बापू भी खुश होते।
हम ले आये वो घड़ी
जिसमे समय देखते थे बापू,
शायद अभी भी दिखें उसमें
बारह, तीन छः और नौ,
हम देखते हैं सिर्फ आंकडे
पर क्या
बापू यही देखते थे?
या .......
वो देखते थे बचा समय
बुरे समय का,
और कितना है समय
आने में अच्छा समय.
वो चाहते थे बताना
चलना साथ समय के,
पर जो हम बापू के उपदेशों कि घडियां
इक पैसे में भी पा लेते,
तो बापू भी खुश होते।
जिसने दीनों कि खातिर,
इक पट ओढ़
बिता दिया जीवन,
उसके सामानों कि गठरी
हम नौ करोड़ में ले आये,
और हम बहुत खुश हैं.
जो उस नौ करोड़ से मिल जाती रोटी,
बापू के दीनों, प्यारों को
तो बापू भी खुश होते,
जो बापू के सामानों से ज्यादा
करते बापू से प्यार,
सच्चाई कि राह स्वीकार
तो बापू भी खुश होते
अभी हम हैं
फिर बापू भी खुश होते॥
- दीपक चौरसिया "मशाल"
और हम बहुत खुश हैं
की अब फिर से
वो सब हिन्दोस्तान की अमानत हैं,
एक ऐनक,
एक घडी,
और कुछ भूला बिसरा सामान।
हमें प्यार है,
हमें प्यार है इन सामानों से
क्योंकि ,
ये बापू की दिनचर्या का हिस्सा थे।
पर ऐसा करने से पहले,
दिल में बैठे बापू से
एक मशविरा जो कर लेते
तो बापू भी खुश होते।
ये वो ऐनक है जिससे,
बापू सब साफ़ देखते थे।
पर हम नहीं देख सकते साफ़ इससे भी
इससे हमें दिखेंगे
मगर दिखेंगे हिंदू , दिखेंगे मुसलमान,
दिखेंगे सवर्ण, दिखेंगे हरिजन ,
दिखेगी औरत, दिखेगा मर्द,
दिखेगा अमीर, दिखेगा गरीब,
दिखेगा देशी और विदेशी।
मगर शायद बापू इसी ऐनक से
इन्सान देखते थे
और बापू के आदर्शों कि बोली
इक पैसा भी लगा पाते,
तो बापू भी खुश होते।
हम ले आये वो घड़ी
जिसमे समय देखते थे बापू,
शायद अभी भी दिखें उसमें
बारह, तीन छः और नौ,
हम देखते हैं सिर्फ आंकडे
पर क्या
बापू यही देखते थे?
या .......
वो देखते थे बचा समय
बुरे समय का,
और कितना है समय
आने में अच्छा समय.
वो चाहते थे बताना
चलना साथ समय के,
पर जो हम बापू के उपदेशों कि घडियां
इक पैसे में भी पा लेते,
तो बापू भी खुश होते।
जिसने दीनों कि खातिर,
इक पट ओढ़
बिता दिया जीवन,
उसके सामानों कि गठरी
हम नौ करोड़ में ले आये,
और हम बहुत खुश हैं.
जो उस नौ करोड़ से मिल जाती रोटी,
बापू के दीनों, प्यारों को
तो बापू भी खुश होते,
जो बापू के सामानों से ज्यादा
करते बापू से प्यार,
सच्चाई कि राह स्वीकार
तो बापू भी खुश होते
अभी हम हैं
फिर बापू भी खुश होते॥
- दीपक चौरसिया "मशाल"
हम ले आये वो घड़ी
ReplyDeleteजिसमे समय देखते थे बापू,
शायद अभी भी दिखें उसमें
बारह, तीन छः और नौ,
हम देखते हैं सिर्फ आंकडे
पर क्या
बापू यही देखते थे?
मशाल साहब,
एक ऐसी कविता जो सही समय पे रची गयी . मन को झिंझोड़ने वाली कविता,
कवि की भाषा में हम भारतीयों की इस झूठी ख़ुशी पे तमाचा
shahid "ajnabi"
Bahut hee asadharan rachna ...
ReplyDeleteBadhai ho ...
- Jai Narayan Tripathi
bahut hi acha...
ReplyDeleteaisa lag raha hai ki agar bapu jinda hote to wo bhi yahi kahte jo aapne kaha hai....
de do roti bhookho ko .. de do ghar garibo ko..
aur mat kharido krodo mai meri ainak..
rahne do meri dhristi ko mere paas hi..
good job ...
keep it up