Friday, April 3, 2009

तुम्हारी याद आती है

अभी झंकार उस पल की ह्रदय में गुनगुनाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है

नहाई हैं मधुर सी गंध के झरने में वो बातें
तुम्हारे प्यार के दो बोल वो मेरी हैं सोगातें
अभी कोयल सुहानी शाम में वो गीत गाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है

हवाओं से रहा सुनता हूँ मन का साज अब तक भी
फिजाओं में घुली है वो मधुर आवाज अब तक भी
वो मुझको पास अपने खींचकर हरदम बुलाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है

तुम्हे ही सोचता रहता हूँ ये सांसें हैं तुमसे ही
अचानक चुभने लगती है मुझे मौसम की खामोशी
ओ' बरबस आंसुओं से मुस्कराहट भीग जाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है

तुम्हे गर भूलना चाहूं तो ख़ुद को भूलना होगा
मगर जीना है तो कुछ इस तरह भी सोचना होगा
कठिन ये जिन्दगी आसान लम्हे भी तो लाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है

-अरुण 'अद्भुत'

1 comment:

  1. तुम्हें गर भूलना चाहूँ तो खुद को भूलना होगा

    याद को मिटाया ही नहीं जा सकता ..
    यादें शायद याद करने के लिए ही होती हैं
    एक सधी हुई भाषा का बहुत अच्छा गीत ,प्रस्तुति लाजवाब

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