अनुभवी शब्दकार श्री प्रसन्नवदन चतुर्वेदी जी की एक ग़ज़ल-
लेकिन इससे पहले नई कलम के सभी पाठकों का तहेदिल से इस ब्लॉग का साथ देने के लिए धन्यवाद्। हमारा आप सभी से एक विनम्र आग्रह है कि कृपया रचनाएँ पढने के बाद ब्लॉग पर अपनी उपस्तिथि अवश्य दर्ज कराएँ क्योंकि ये एक दर्शन भी है और किसी को समझने का मनोविज्ञान भी। यदि कोई कविता को बिना रेटिंग दिए या समीक्षा के दो शब्द लिखे बगैर ब्लॉग से वापस जाता है तो वो बहुत कुछ उन लोगों कि तरह ही हैं जो इस दुनिया में आके भी अपनी छाप छोडे बिना ही यहाँ से रुखसत कर जाते हैं। वैसे भी हम सभी नई कलमों को आप जैसे मालियों के प्रोत्साहन कि नितांत आवश्यकता है और आप जैसे साहित्यानुरागी भी चाहेंगे कि वो सिर्फ़ पाठक नहीं बल्कि सुधी पाठक कहलायें। शायद रेटिंग देने में १ सेकंड और समीक्षा के कुछ शब्द लिखने में ज्यादा समय तो नहीं लगता लेकिन यकीन मानिये आपके कमेन्ट हमारे रचनाकारों के दिलों का कितनी खुशी देते हैं वो शब्दों में बयां करना मुश्किल है.
धन्यवाद्, शुक्रिया..
जा रहा है जिधर बेखबर आदमी ।
वो नहीं मंजिलों की डगर आदमी ।
उसके मन में है हैवान बैठा हुआ,
आ रहा है हमें जो नज़र आदमी ।
नफरतों की हुकूमत बढ़ी इस कदर,
आदमी जल रहा देखकर आदमी ।
दोस्त पर भी भरोसा नहीं रह गया,
आ गया है ये किस मोड़ पर आदमी ।
क्या करेगा ये दौलत मरने के बाद,
मुझको इतना बता सोचकर आदमी ।
राम से तू न डर तू खुदा से न डर,
अपने दिल की अदालत से डर आदमी ।
हर बुराई सुराखें है इस नाव की,
जिन्दगी नाव है नाव पर आदमी ।
आदमी है तो कुछ आदमियत भी रख,
गैर का गम भी महसूस कर आदमी ।
तू समझदार है कहीं और न जा,
कभी ख़ुद ही से ख़ुद बात कर आदमी ।
- प्रसन्नवदन चतुर्वेदी
- प्रसन्नवदन चतुर्वेदी
bahut khoob.......Mubarak ho aapko....
ReplyDeleteखूबसूरत गजल।
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर पहली बार आया हूं, अच्छा लगा यहां आकर।
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सम्मोहन के यंत्र
5000 सालों में दुनिया का अंत
sidhi aur saral gazal ke liye badhai.........
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