अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको
मैं हूँ तेरा तू नसीब अपना बना ले मुझको
यूँ तो मैं एक लंबे अरसे से तुम्हें कुछ लिखना चाहता था। मगर सब कुछ ऐसा होता रहा और मैं लिखने का वक्त ही नहीं निकल पाया। आज ख़त की शक्ल में पहला पन्ना सौंप रहा हूँ... मेरा मानना है जब दो मुहब्बत करने वालों के दरमियाँ ख़त की अदला - बदली न हो तो प्यार अधूरा है..... और मैं कभी नहीं चाहूँगा की मेरा प्यार अधूरा हो।
यार सोचो तो जरा ज़िन्दगी भी क्या खूब मकाम दिखाती है। आदमी हँसना चाहे नहीं हंस सकता , रोना चाहे रो भी नहीं सकता , यहाँ तक की मरना चाहे मर भी नहीं सकता ....... आज सोचता हूँ अपना पूरा दिल, पूरी तकलीफ इन पन्नों पे उडेल दूँ ...... और इन लफ्जों की ताकत इनका असर तुम्हारे लहू के कतरे - कतरे में फ़ैल जाए।
यार सोचो तो जरा ज़िन्दगी भी क्या खूब मकाम दिखाती है। आदमी हँसना चाहे नहीं हंस सकता , रोना चाहे रो भी नहीं सकता , यहाँ तक की मरना चाहे मर भी नहीं सकता ....... आज सोचता हूँ अपना पूरा दिल, पूरी तकलीफ इन पन्नों पे उडेल दूँ ...... और इन लफ्जों की ताकत इनका असर तुम्हारे लहू के कतरे - कतरे में फ़ैल जाए।
आज जब ख़त लिख रहा हूँ -तो अफ़सोस ही अफ़सोस। मैंने अब लिखा तो क्या लिखा , सच बताऊँ तो हम दोनों ने अपने मुहब्बत के सफर में खुशियाँ देखी ही नहीं। बेट्टा, तुम सरापा दर्द हो दर्द ... तुम्हारे सीने का दर्द तो लफ्जों में बयां किया ही नहीं जा सकता .... शब्द कहीं ठहरते ही नहीं तुम्हारे ग़म के आगे ....
मैं अल्लाह तआला से बारहा गुजारिश करूँगा की जो फिक्र पहले दिन स्टेशन पर तुम्हारी आंखों में थी , वही हमेशा आखिरी साँस तक रहे। वो तुम्हारे शहर के स्टेशन पर एक जगह तलाश कर टायरों पे बैठ के मुझे ,लोहे कुरानी, सफर की दुआ थमाना ... वो साफ़ शफ्फाफ दिल जो फिक्र से मामूर था। और फ़िर वक्त के साथ उसमें मुहब्बत घुलती चली गयी। कोई इस तरह से भी मुझे अपना बना सकता है कभी सोचा ही नहीं। किसी के एक इशारे पे मैं कुछ भी कर सकता हूँ, कोई मेरे एक इशारे पे हदों को पार कर सकती है- कौन जनता था ?
तुम्हारे घर के आसपास के एरिया में एक खिंचाव है , इन फिजाओं में मुहब्बत घोली गयी है। हवा में मुहब्बत की खुशबुएँ हैं। जो यहाँ आए वो यहाँ का होके रहना चाहेगा। इन फिजाओं को महसूस करना चाहेगा।
कोई मुझे मुहब्बत के बाहुपाश में ऐसे पकड़ लेगा - मेरा दिल कभी नहीं जानता था। मैं किसी के कहने पर अपना शहर छोड़कर तुम्हारे शहर आऊंगा। आह - क्या मुहब्बत, यहाँ बसने तक आते -आते एक पागलपन भी इसमें शामिल हो गया....... उन आंखों की चमक , उस चेहरे की मुस्कराहट आज भी मेरे दिलो दिमाग पे जिंदा है।
जो उस दिन तुम्हारे होठों , तुम्हारे आरिज, तुम्हारी बोलती हुई आंखों पर थी..... जिस दिन तुम न जाने कौन से हक़ से मेरे लिए रोजमर्रा की चीजें लेके आयी थी..... उस खुबसूरत जगह से जाने के बाद हमारी जो फोन पे बातें हुईं तुम्हें याद होंगी ....तुम उस दिन वाकई खुश थी - तुम को लग रहा था मैं आगे बढ़ रहा हूँ - तुम्हारे संग
तुम्हें वो सब कुछ नज़र आ रहा था जो हम दोनों ने कभी ख्यालों में बातें की थी। उन्हें एक मंजिल मिलती नज़र आ रही थी ....एक सफर आगे बढ़ रहा था। किसी का प्यार दूर कहीं आसमानों में एक बिजली की तरह चमका था।
और जब वो बिजली चमक ही चुकी थी। तो हम दोनों भी एक नई दुनिया की ज़िन्दगी में क़दम रखने लगे। न जाने खुदा की किस काम में क्या मर्जी है- वो हमसे क्यूँ क्या करा रहा होता है ..... यहाँ हम दोनों बड़े खुश थे उस शाम। जाहिर सी बात थी हम दोनों साथ होने की एक बार फ़िर बाँतें करने लगे। तुमको भी लगा कोशिश तो की जाए ..... एक बार ज़माने को बताया तो जाए की हाँ हमें मुहब्बत है।
मगर अफ़सोस- सद अफ़सोस रात गहरी होते -होते खुशियों की ये कड़ी टूट गयी - हम तो बिखरे ही मेरी बेट्टा भी बिखर गयी। और उस दिन से आज तक हम दोनों उन बिखरे हुए ख्वाबों की किरचियाँ समेट रहे हैं।
जारी है-
- शाहिद अजनबी
bahut hi sundar laga kirachiyo ko sametana.............our khuda ki marji bhi bahut sundar
ReplyDeleteबहुत उम्दा लेखन..एक सांस में पढ़ते चले गये..जारी रहिये.
ReplyDeleteआपका ब्लॉग नित नई पोस्ट/ रचनाओं से सुवासित हो रहा है ..बधाई !!
ReplyDelete__________________________________
आयें मेरे "शब्द सृजन की ओर" भी और कुछ कहें भी....
मगर अफ़सोस- सद अफ़सोस रात गहरी होते -होते खुशियों की ये कड़ी टूट गयी - हम तो बिखरे ही मेरी बेट्टा भी बिखर गयी। और उस दिन से आज तक हम दोनों उन बिखरे हुए ख्वाबों की किरचियाँ समेट रहे हैं।
ReplyDeleteबहुत ही शानदार और प्रभावी लगा आपका लेखन ...बधाई ....!!
good
ReplyDeleteVERY VERY HEART TOUCHING ..
ReplyDeleteBEHAD KHOOBSURAT LIKHA HAI SIR..
BAHUT-BAHUT SHUKRIYA.....
Delete'तुम सरापा दर्द हो दर्द'
ReplyDeleteकितनी सटीक और सच्ची परिभाषा है
मोहब्बत की ...