शजर पर एक ही पत्ता बचा है
हवा की आँख में चुभने लगा है ,
नदी दम तोड़ बैठी तषनगी से
समंदर बारिशों में भीगता है,
कभी जुगनू कभी तितली के पीछे
मेरा बचपन अभी तक भागता है,
सभी के ख़ून में ग़ैरत नही पर
लहू सब की रगों में दोड़ता है,
जवानी क्या मेरे बेटे पे आई
मेरी आँखों में आँखे डालता है,
चलो हम भी किनारे बैठ जायें
ग़ज़ल ग़ालिब सी दरिया गा रहा है।
- जतिंदर 'परवाज़'
छायांकन- दीपक 'मशाल'
बेहद खूबसूरत और प्रभावपूर्ण गजल । आभार ।
ReplyDeleteसभी के ख़ून में ग़ैरत नही पर
ReplyDeleteलहू सब की रगों में दोड़ता है,
बहुत खूबसूरत गज़ल आभार्