Thursday, October 1, 2009

ग़ज़ल



शजर पर एक ही पत्ता बचा है
हवा की आँख में चुभने लगा है ,
नदी दम तोड़ बैठी तषनगी से
समंदर बारिशों में भीगता है,
कभी जुगनू कभी तितली के पीछे
मेरा बचपन अभी तक भागता है,
सभी के ख़ून में ग़ैरत नही पर
लहू सब की रगों में दोड़ता है,
जवानी क्या मेरे बेटे पे आई
मेरी आँखों में आँखे डालता है,
चलो हम भी किनारे बैठ जायें
ग़ज़ल ग़ालिब सी दरिया गा रहा है। 
- जतिंदर 'परवाज़'
छायांकन- दीपक 'मशाल'

2 comments:

  1. बेहद खूबसूरत और प्रभावपूर्ण गजल । आभार ।

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  2. सभी के ख़ून में ग़ैरत नही पर
    लहू सब की रगों में दोड़ता है,
    बहुत खूबसूरत गज़ल आभार्

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