"व" अक्षर इतना विनाशकारी क्यूँ है
क्यूँ इससे मिलते शब्द रोते हैं
वैश्या, विकलांग, विधवा तीनो
दर्द से भरे होते हैं.
वैश्या कोई भी जानम से नही होती
हालत या मजबूरी उससे कोठे पर
ले जाती है., बाँध कर घूँगरू
नाचती है रिज़ाति हैं. छुप कर
आँसू बहती है.
दो प्यार के बोलों को तरस
जाती है,
मौत क़ी दुहाई हर रोज़
खुदा से मांगती
विकलांग कोई भी
मर्ज़ी से नही जानम लेता
फिर क्यूँ सब घृणा से देखते है
उससे भी हक़ है
उतना ही अधिकार है
जितना सब को है.
क्यूँ उससे चार दीवारी तक ही
सिमट कर रखते है
क्या उससे प्यार का हुक़ नही
क्या उसके जज़्बातों में
कमी है-----------
या दुनिया का दिल इतना छोटा है
बताओ यह किसका कसूर है.
विधवा
यह श्राप क़ी तरहा अक्षर है
जिससे भी यह जुड़ जाए
उसकी तो ज़िंदगी लाश है
प्यार तो खोती है मासूम
लोग उसका जीना भी
छीन लेते हैं
सिंगार तो छूट जाता है
उसका निवाला भी छीन लेते हैं
बिस्तर पर पति का साथ छूट
जाता है ------------
कामभक्त बिस्तर भी
छीन लेते हैं
हर ओर विनाश ही मिलता है
व शब्द का कैसा यह विकार है
वैश्या, विकलांग विधवा.
सारे ही इस विनाश का शिकार है
- नीरा
क्यूँ इससे मिलते शब्द रोते हैं
वैश्या, विकलांग, विधवा तीनो
दर्द से भरे होते हैं.
वैश्या कोई भी जानम से नही होती
हालत या मजबूरी उससे कोठे पर
ले जाती है., बाँध कर घूँगरू
नाचती है रिज़ाति हैं. छुप कर
आँसू बहती है.
दो प्यार के बोलों को तरस
जाती है,
मौत क़ी दुहाई हर रोज़
खुदा से मांगती
विकलांग कोई भी
मर्ज़ी से नही जानम लेता
फिर क्यूँ सब घृणा से देखते है
उससे भी हक़ है
उतना ही अधिकार है
जितना सब को है.
क्यूँ उससे चार दीवारी तक ही
सिमट कर रखते है
क्या उससे प्यार का हुक़ नही
क्या उसके जज़्बातों में
कमी है-----------
या दुनिया का दिल इतना छोटा है
बताओ यह किसका कसूर है.
विधवा
यह श्राप क़ी तरहा अक्षर है
जिससे भी यह जुड़ जाए
उसकी तो ज़िंदगी लाश है
प्यार तो खोती है मासूम
लोग उसका जीना भी
छीन लेते हैं
सिंगार तो छूट जाता है
उसका निवाला भी छीन लेते हैं
बिस्तर पर पति का साथ छूट
जाता है ------------
कामभक्त बिस्तर भी
छीन लेते हैं
हर ओर विनाश ही मिलता है
व शब्द का कैसा यह विकार है
वैश्या, विकलांग विधवा.
सारे ही इस विनाश का शिकार है
- नीरा
ek manmohak rachna...
ReplyDeleteगहन दृष्टि ,मौलिक चिंतन
ReplyDeleteबहुत सही ध्यान दिया है .. 'व' से ही शुरू होते हैं तीनो .. अच्छी रचना लिखी आपने !!
ReplyDeleteसारगर्भित, मौलिक रचना
ReplyDeleteबी एस पाबला
रचना तो निसंदेह बहुत सुन्दर है मगर कहना चाहूँगा कि आप यह न भूले कि व से विधाता भी एक नाम है !
ReplyDeleteab bahut fark aa gya hai vaishya ka roop badla hai viklag ke prti bhi jagrukta aa gai hai .aur vidhva bhi apni ladai ldne me sakshm hoti ja rhi hai .va se bhut sundar shabd hai .vairagy vasundhra, vivah, vachan ,varan aadi aadi .
ReplyDeleteबहुत गहन दृश्टी है मगर विधाता, विश्वास विभा विशाल भी तो व से ही बनते हैं । हर चीज़ के दो पहलू होते हैं। इसी तरह शब्द भी। शुभकामनायें
ReplyDeletemain aap sabki dilse abhari hoon
ReplyDeleteaapne apna keemti waqt diya aor hausla afzaayi ki.
sach bahut se aor shabd v askshar se hain koshish
karoongi kuch unpar bhi likhoon.
dhanyawaad
"Va" achhar se jude patron ka marmik chintan sarahniya hai.
ReplyDeleteKotishah Sadhuvaaw.
bahut hi badiya
ReplyDeleteaati uttam
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aapke bahut sarre future fans aapki kavitayein padne ka intezaar kar rahein hai ..do login and post.