Tuesday, March 24, 2009

सपनों में तुम

तुम बसी हो मेरे आसपास,
होकर मेरे कितने ही पास,
तुम्हें पाने में फिर भी हूँ
मैं नाकाम,
क्योंकि तुम
मेरे ख्यालों की दुनिया से
निकलती ही नहीं हो,
तुम हो तो सही पर
हकीकत में यहाँ नहीं हो।
मैं तुम्हें सोचता हूँ,
तुम्हें देखता हूँ
और समझता भी हूँ
पर कभी भी तुम्हें स्पर्श न कर सका,
अपने बाहुपाश में न भर सका।
हवा के एक झोंके सी तुम

पास होकर भी निकल गई
और मैं.....
ख्यालों में रह कर ही,
सपनों में तुम्हें पाकर भी,
तुम्हारे ख्यालों में गुम हो गया।
अच्छा न लगे शायद तुम्हें
मेरा छूना....
मेरा तुम्हें देखना.....
पर.... मैं तुम्हें
दिल के हाथों से छूना चाहता हूँ,
मन की आँखों से देखना चाहता हूँ।
आकर सपनों से हकीकत की जमीं पर
एक क्षण को.... कभी....
तुम वक्त को थाम लो,
भटकते नयनों की आत्मा को
जरा आराम दो।
फिर चाहे तुम
उन्हीं ख्यालों की वादियों में गुम हो जाना,
सपनों के संसार में छिप जाना।
मैं तुम्हारे
उस एक क्षण के स्वरूप को
अपने दिल में सजा लूँगा
और तुम्हें फिर से
ख्यालों की वादियों से निकाल कर,
सपनों के संसार से खोज कर
नजरों के बंद साये में
सदा-सदा को बसा लूँगा।

- डा0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर

1 comment:

  1. main tumhare
    us ek kshan ke swaroop ko
    apne dil men saja lunga.

    ek kavi ki soch,....jo khayalon hi khayalon.. men ...hai
    ek achhi kavita

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