Sunday, March 4, 2012

दरिया होके समंदर की अदा रखता है

वो रूह में मोती जुल्फों में हवा रखता है
दरिया होके  समंदर की अदा रखता है

दिल में रखके मोहब्बत की रौशनी क्यूँ 
निगाहों में अदावत की ज़फ़ा रखता है

क्यूँ नहीं रह पाता अजीज़ दिल के पास
वक़्त बेरहम है एक फ़ासला रखता है

हम आज समझे ग़रीबों की गुमनामियां
जिसको देखो रईसों का पता रखता है

लुटा के जा रहे हैं हम सब कुछ प्यार में
देखना है कौन कितना वास्ता रखता है

- आलोक उपाध्याय "नज़र"

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