वो रूह में मोती जुल्फों में हवा रखता है
दरिया होके समंदर की अदा रखता है
दिल में रखके मोहब्बत की रौशनी क्यूँ
निगाहों में अदावत की ज़फ़ा रखता है
क्यूँ नहीं रह पाता अजीज़ दिल के पास
वक़्त बेरहम है एक फ़ासला रखता है
हम आज समझे ग़रीबों की गुमनामियां
जिसको देखो रईसों का पता रखता है
लुटा के जा रहे हैं हम सब कुछ प्यार में
देखना है कौन कितना वास्ता रखता है
- आलोक उपाध्याय "नज़र"
दरिया होके समंदर की अदा रखता है
दिल में रखके मोहब्बत की रौशनी क्यूँ
निगाहों में अदावत की ज़फ़ा रखता है
क्यूँ नहीं रह पाता अजीज़ दिल के पास
वक़्त बेरहम है एक फ़ासला रखता है
हम आज समझे ग़रीबों की गुमनामियां
जिसको देखो रईसों का पता रखता है
लुटा के जा रहे हैं हम सब कुछ प्यार में
देखना है कौन कितना वास्ता रखता है
- आलोक उपाध्याय "नज़र"
बहुत बढिया गजल है.
ReplyDeletebhtreen
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