Monday, April 27, 2009

ग़ज़ल



आतंकवादियों के नाम नई कलम के नए उभरते हस्ताक्षर अमित साहू जी का पैगाम एक काबिलेतारीफ ग़ज़ल के रूप में -

कभी किसी की बात का ऐसा असर भी,
हो बदले ख़यालात और खुदा का डर भी हो.

आतंकियों के दिल में जगे प्यार की अलख,
बीवी हो,बच्चे हों,प्यारा-सा घर भी हो.

खुदा के नाम पर लगा रखी है जेहाद,
खुदा की पाकीजगी का जरा असर भी हो.

निहत्थों और बेगुनाहों पे गोलियां चलाना,
हिजडों की करामात है, उन्हें खबर भी हो।

क्या सोचते हो के खुदा तुम्हे जन्नत देगा,
हैवान होकर सोचते हो के बशर भी हो.

करते हो हमेशा ही 'गैर मुसलमाना' हरकत,
फिर सोचते हो के दुआ में असर भी हो.

मैं कहता हूँ, तुम मुस्लिम हो ही नहीं सकते,
बिना धर्म के हो तुम , ये तुमको खबर भी हो.
- अमित अरुण साहू, वर्धा

1 comment:

  1. Kabil-e-tareef gazal. amit ji ko mubarakbad aur aisi hi aur gazal likhne ke liye shubhkamnayen.

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