अभी कल ही प्रेम दिवस बीता , और मुहब्बत की बात किसी ने छेड़ दी. उन चन्द लायनों को आपके साथ बाँटने जा रहा हूँ-
राहो मे चलते कई मुसाफिर मिलते है और फिर मिल के जुदा तो हो जाते है लेकिन अपनी यादो का समां कुछ इस तरह से छोड़ जाते है ..
राहो मे चलते कई मुसाफिर मिलते है और फिर मिल के जुदा तो हो जाते है लेकिन अपनी यादो का समां कुछ इस तरह से छोड़ जाते है ..
"मिल के बिछड़ जायेगे फिर मिलेंगे कब
तुम न मिले तो तुम्हारी यादो से खुश हो जायगे
मांग लेना जो चाहो हमसे
चाहे तो हमारी जान,
न मांगना हमसे अपनी यादे
हम जिंदा तो रहेंगे फिर भी मर जायगे"
- रिज़वान इलाही
- रिज़वान इलाही
न मांगना हमसे अपनी यादे
ReplyDeleteहम जिंदा तो रहेंगे फिर भी मर जायगे"
बहुत खूब। ाच्छा प्रयास है। शुभकामनायें।
खुबसूरत....
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