अखतर अली का आलेख - मंटो - नामी कहानियों का बदनाम कथाकार
साभार - रचनाकार
आज आपको रायपुर से - जनरल मैनेजर साहब - अख्तर अली साहब का आलेख सौंप रहा हूँ.... मंटो पे आप भी अपना रुख जाहिर करें. इंतज़ार रहेगा.
मुझे रंडी के कोठे और पीर की मज़ार इन दो जगहों से बहुत डर लगता है क्योंकि पहली जगह लोग अपनी औलाद से और दूसरी जगह अपने खुदा से पेशा करवाते हैं।मंटो जन्मशताब्दी वर्ष
- मंटो की एक कहानी से
मंटो - नामी कहानियों का बदनाम कथाकार
उसने अपनी कहानियों से पूरे समाज में हंगामा मचा दिया था , जिसके लिखे को पढ़ कर लोग तिलमला उठे ,लोगों के तन बदन में आग लग गई , वे उसे बर्दाश्त नहीं कर सके। उसने जितनी उम्दा कहांनियाँ लिखी लोगों ने उस पर उतने ही गन्दे इल्ज़ाम लगाये। उसके खिलाफ मुकदमे दायर किये गये , उसे पागल करार दिया गया, फिर भी मंटो लिखता गया, जी हां उन नामी कहानियों के बदनाम कहानीकार का नाम मंटो था , सआदत हसन मंटो।
आज जब उस महान कहानीकार को इस दुनियाँ जिसने उसे चैन से जीने नहीं दिया से रूखसत हुए पैंतालीस साल से भी ज्यादा वक्त गुज़र चुका है तब मैं आज के हालात में मन्टो की कहानियों पर नज़र ड़ालता हूं और यह जानने की कोशिश करता हूं कि उसने ऐसा क्या लिख गया जो लोगों को नागवार गुज़रा और लोगों ने उसका जीना हराम कर दिया! मैं उसकी कहानियाँ बुराइंयां ढूंढने के इरादे से पढ़ता हूं और उसकी कलम का कायल होता जाता हूं। वाह , ज़ालिम की कलम में क्या जादू है, अपनी बात कहने का क्या जबरदस्त तरीका है। उसकी कहानी पढ़ कर एक बात खास तौर पर सामने आती है कि मन्टो ने कहानियों में कुछ नहीं कहा बल्कि कुछ खास कहने के लिये कहानियाँ लिखी।
हालांकि मै बहुत बड़ा विद्धान नहीं और न ही आज तक मंटो को पूरी तरह समझ ही पाया हूँ लेकिन चूंकि मै भी इसी विधा से जुड़ा हूँ इसलिये इसमें कुछ दखल अंदाज़ी कर सकने की क्षमता रखता हूँ। मैं यह पूरे आत्मविशवास के साथ कह सकता हूँ कि मन्टो को पागल कहने से बढकर कोई पागलपन हो ही नहीं सकता। अगर कोई कहता है कि मन्टो की कहानियाँ अश्लील है तो मेरा कहना है कि अश्लील उसकी कहानी नहीं बल्कि पढ़ने वालो का दृश्टिकोण है। आखिर अश्लीलता का मापदंड़ क्या है? यदि मन्टो जो लिखा वह अश्लील है तो जो कालिदास ने लिखा वह क्या है?
ग्यारह मई उन्नीस सौ बारह को समराला ( जिला लुधियाना ) में पैदा हुए मन्टो जिन्होने सात साल की उम्र मे जलियावाला बाग का खूनी हत्याकांड़ देखा , युवा अवस्था में देश का विभाजन, उस समय के रक्तपात को देखा , मन्टो जिसने रूसी कहानी के रूपांतर से कथा साहित्य की दुनियाँ में कदम रखा - जिनकी कहानियाँ जब मैं , मैं जो इस दुनियाँ में जब आया तब मेरे इस प्रिय लेखक को इस दुनियाँ से सिधारे पांच वर्ष हो चुके थे , आज पढ़ता हूँ तो एैसा महसूस होता है कि मन्टो ने जो लिखा वह कहानी नहीं बल्कि आंखो देखी घटना का चित्रण है जिसे अफसाने का नाम दे दिया गया है। बस ज़माने को मन्टो का यही चित्रण पचा नहीं, क्योंकि आज जिसे हम कहानी कहते हैं वह मन्टो की कहानी नहीं बल्कि ज़माने को दिखाया गया मन्टो का वह आईना है जिसमे ज़माने को अपना असली चेहरा नज़र आ गया। आप मन्टो की कहानी सिर्फ एक बार पढ कर मत छोडि़ये बल्कि दूसरी और तीसरी बार भी पढि़ये मेरा दावा है आप यह अवश्य स्वीकार करेगे कि कहानी का कथानक लेखक की कोरी कल्पना नहीं बल्कि उसका भोगा गया यथार्थ है , दिल पर खाया गया ज़ख्म है।
मन्टो की विवादग्रस्त कहानी ““खोल दो“ इंसानी दरिन्दगी का वास्तविक रूप है , इसकी नायिका सकीना मन्टो की कल्पना नहीं बल्कि विभाजन के समय का कटु सत्य है , जो इस कहानी को अश्लील रचना कहता है तो क्षमा कीजियेगा मेरा मानना है कि उसे अच्छे साहित्य को समझने की तमीज़ नहीं है। पाठकों का यह कर्तव्य होता है कि वे लेखक की भावनाओ और उसके दृश्टिकोण को ध्यान में रखते हुए उसकी कृति को पढ़े़, कथा खत्म होने पर पुस्तक भले बंद कर दे किन्तु मस्तिष्क के द्धार खुले रखे। क्योंकि मन्टो जैसे रचनाकार न तो अनावश्यक शब्द लिखते हैं न शब्दों का अनावश्यक प्रयोग करते हैं , मन्टो के शब्द पाठको की आंखो के रंगमंच पर दृश्य बन कर नृत्य करने लगते हैं। मन्टो के शब्द कही तीर कही खंजर कही ज़हर तो कही अंगार बन जाते हैं।
अपनी एक कहानी में मन्टो लिखते हैं - मुझे रंडी के कोठे और पीर की मज़ार इन दो जगहों से बहुत डर लगता है क्योंकि पहली जगह लोग अपनी औलाद से और दूसरी जगह अपने खुदा से पेशा करवाते हैं। मंटो का यह आक्रमक तेवर समाज झेल नहीं पाया और चंद मुल्ला , पंडि़त और नेताओं के गिरोह ने उसका जीना दुश्वार कर दिया , किन्तु जिस प्रकार घायल शेर और ज्यादा खतरनाक हो जाता है उसी प्रकार पीडि़त कलम और अधिक विद्रोही हो गई , इसी का परिणाम है कहानी “शाहदौले के चूहे” जो धर्मांधता के मुंह पर मारा गया मन्टो का वह तमाचा है जिसकी झनझनाहट समाज आज तक महसूस कर रहा है। तथाकथित हाई सोसायटी के साफ सुथरे कपड़े पहनने वालों की गंदी मानसिकता को बेनकाब करने से भी मन्टो साहब नहीं चूके और चंद लाईनों में ही उनका चरित्र चित्रण कर दिया , बानगी देखिये -
आपकी बेगम कैसी कैसी है?एक अन्य लघु कथा में मंटो के पात्र जो संवाद कहते हैं ऐसा लिखने का दम तो बस मंटो की कलम में ही था -
यह तो आपको मालूम होगा , हां आप अपनी बेगम के बारे में मुझसे दरयाफ्त कर सकते हैं।
यार तुम औरतों से याराना कैसे गांठ लेते हो?मन्टो विसंगतियों और उसके जिम्मेदार लोगों पर लगातार प्रहार किये जा रहा था ,खराबी को मुंह छुपाने के लिये भी जगह नहीं मिल रही थी। बहुत हाथ पैर मारने के बाद अंततः खिसियाई बिल्ली खम्बा नोचने लगी और साहित्य के क्षेत्र में यह बात ज़ोर पकड़ने लगी कि मन्टो की कहानियों में अश्लीलता भरी हुई है , मन्टो गंदा लेखक है। यह सच भी है कि यदि कोई अश्लील दृश्टिकोण लिये मन्टो की कहानियां पढेगा तो कुछएक कहांनियों में उसे अश्लीलता की झलक मिल जायेगी। यहां इस बात पर ध्यान दिया जाये कि मैंने दो बात कही है एक “अश्लील दृश्टिकोण” और दूसरी ” कुछ एक कहानी ”।
याराना कहां गांठता हू , बकायदा शादी करता हूं।
शादी करते हो?
हां भई, मैं हराम कारी का कायल नहीं। शादी करता हूं और जब उससे जी उकता जाता है तो हक ए महर अदा कर उससे छुटकारा हासिल कर लेता हूं।
यानि?
इस्लाम जि़न्दाबाद।
किन्तु इन्हीं कहानियों को जब एक समझदार और जागरूक पाठक पढ़ेगा तो इसे कलम का जादू , कलम का कमाल , लेखक की योग्यता जैसे अलंकरणों से सुसज्जित करेगा , क्योंकि उसमें इस बात को समझने की तमीज़ होगी कि इसमें लेखक का उद्धेश्य अश्लीलता का वर्णन नहीं बल्कि समाज के चारित्रिक पतन का चित्रण है। दरअसल मंटो ने अपनी कलम के साथ समझौता नहीं किया। यदि उसकी कहानी का पात्र वैश्या का दलाल है तो मंटो ने उसके मुंह से उसी स्तर के शब्द कहलवाये हैं जिस स्तर का वह आदमी है।
मंटो ने शब्दों का इस्तेमाल करते समय जि़न्दगी की इस हकीकत को ध्यान में रखा है कि जिस मुंह में हराम की रोटी जायेगी उस मुंह से शराफत के अल्फाज़ निकल ही नहीं सकते ,अगर मंटो की कथा में कोई जवान लड़का नहाती हुई लड़की को छुप कर देख रहा है तो स्वाभाविक है उस समय उसके दिल में देशभक्ति के विचार तो नहीं आयेगे और न ही समाज सेवा के। उस समय उसके मन में जो विचार पैदा होंगे उसकी का मन्टो ने पूरी ईमानदारी के साथ वर्णन किया है ,जो लिखा वही वास्तविकता है , किन्तु लेखक की योग्यता के कारण वर्णन इतना जीवंत बन पड़ा है कि पढ़ते समय पाठकों की आंखों में एक एक शब्द दृश्य बन कर खड़ा हो जाता है।
अब इसे लिखने वाले की काबिलीयत मानना चाहिये था लेकिन लोगों ने इसे उसका ऐब मान लिया और इस बात को पूरी तरह नज़र अंदाज़ कर दिया कि वह कहानी किस बिन्दु पर जाकर खत्म होती है और क्या बात कहती है? मन्टो की कहांनियो की यह खासियत है कि वे तो खत्म हो जाती है लेकिन पढ़ने वालों के दिमाग में सैकड़ों सवालात पैदा कर जाती है , खास कर ”खोल दो“,”ठंड़ा गोश्त“, दो कौमें , शहदौले के चूहे ,कहानियो में तो यह बात साफ तौर पर उभर कर आती है कि इनमें जो लिखा उसे तो हर सामान्य पाठक पढ़ लेता है लेकिन समझदार पाठक उसे भी पढ़ लेता है जिसे मन्टो ने शब्दों में नहीं ढाला , उन अलिखित वाक्यों को भी पढ़ लेता है जिसे कहने के लिये मन्टो ने पूरी कहानी लिखी। मंटो शब्दो का इस्तेमाल कितनी खूबसूरती से करते हैं इसका एक बेहतरीन नमूना उनकी कहानी ” सड़क के किनारे “ में देखने को मिलता है। नायिका को गर्भवती होने का एहसास होता है , उस एहसास को मन्टो ने शब्दो में यूं बयान किया है -
” मेरे जिस्म की खाली जगहें क्यों भर रही है? ये जो गड़ढे थे किस मलबे से भरे जा रहे है? मेरी रगो में ये कैसी सरसराहटें दौड़ रही है? मैं सिमटकर अपने पेट में किस नन्हे से बिन्दु पर पहुंचने के लिये संघर्ष कर रही हूं? मेरे अंदर दहकते हुए चूल्हों पर किस मेहमान के लिये दूध गर्म किया जा रहा है? यह मेरा दिमाग मेरे ख्यालात के रंग बिरंगे धागों से किसके लिये नन्ही मुन्नी पोशाकें तैयार कर रहा है? मेरे अंग अंग और रोम रोम मे फंसी हुई हिचकियां लोरियों में क्यों बदल रही हैं? यह मेरा दिल मेरे खून को धुनक धुनक कर किसलिये नर्म और कोमल रजाइयां तैयार कर रहा है? मेरे सीने की गोलाईयों में मस्जिदों के मेहराबों जैसी पाकीज़गी क्यों आ रही है?मंटो जिसने सारी उम्र सिर्फ लिखा है और इतना ज्यादा लिखा है कि उसके सम्पूर्ण साहित्य का यहां उल्लेख नहीं किया जा सकता। हो सकता है उसकी अनगिनत रचनाओ में कुछ एक कथ्य या शिल्प की दृष्टि से कमज़ोर हो , किन्तु उन चंद रचनाओं से मन्टो का सम्पूर्ण रचना संसार को आंकना न्यायसंगत नहीं होगा और उस अश्लीलता का आरोप लगाना उसकी योग्यता को झुठलाना होगा। यदि मन्टो का दृष्टिकोण अश्लील होता तो उसकी कलम टोबा टेक सिंह , खुदा की कसम , मम्मी , काली शलवार , ये मर्द ये औरतें , रत्ती माशा तोला , जैसी बेहतरीन कहानियाँ न रच पातीं। जिन्हें मन्टो की कलम परेशान करती रही उन्हें मन्टो ने स्वयं कहा है कि -
”ज़माने के जिस दौर से हम गुज़र रहे है अगर आप उससे वाकिफ़ नहीं तो मेरे अफसाने पढि़ये और अगर आप इन अफसानों को बरदाश्त नहीं कर सकते तो इसका मतलब है कि ज़माना नाकाबिले बर्दाश्त है , मेरी तहरीर में कोई नुक्स नहीं। जिस नुक्स को मेरे नाम से मनसूब किया जाता है वह दरअसल मौजूदा निज़ाम का नुक्स है। मैं सोसायटी की चोली क्या उतारूंगा वो तो है ही नंगी।“- - - - - - -
अखतर अली
फ़ज़ली अर्पाटमेंट
आमानाका
रायपुर ( छत्तीसगढ़ )
मो़ 9826126781
हाल में मेरी नज़र से गुज़रा मंटो पर सबसे अच्छा आलेख।
ReplyDeleteमुबारक !
सच बहुत कडुवा जो होता है
ReplyDeleteसटीक लेख
ReplyDeleteKya baat hain, Janaab!!! Majaa aa gaya!! Aag ko mahsoos kiya!!
ReplyDeleteअच्छा आलेख , मंटो ने जिस समय समाज की कुरीतियों पर प्रहार करने वाली कहानी व साहित्य लिखा , उस से समाज के कट्टरवादी व दकियानूसी विचारधारा वाले लोगों का भड़कना तय ही था और मंटो यही चाहते थे ,ताकि समाज को इनसे मुक्त किया जा सके
ReplyDeleteअच्छे लेख के लिए आभार