प्रेम दिवस पर ,बेलफास्ट से दीपक चौरसिया "मशाल" की खामोश पलकें की बानगी देखें -
नाम लिख लिख के तेरा मिटा देता हूँ,
खुद का चेहरा ही खुद से छिपा लेता हूँ।
देख ले न कोई तुझको इन आँखों में,
इसलिए सबसे नज़रें बचा लेता हूँ।
बेवफा तुझको कहना मुनासिब नहीं,
कब्र अपनी वफ़ा की सजा लेता हूँ॥
क्या मुक़द्दर है क्या है मेरे हाथ में,
लेके खंज़र लकीरें बना लेता हूँ।
पूछता है कोई जब तेरे बारे में,
होके खामोश पलकें गिरा देता हूँ।
दीपक चौरसिया 'मशाल'
नाम लिख लिख के तेरा मिटा देता हूँ,
खुद का चेहरा ही खुद से छिपा लेता हूँ।
देख ले न कोई तुझको इन आँखों में,
इसलिए सबसे नज़रें बचा लेता हूँ।
बेवफा तुझको कहना मुनासिब नहीं,
कब्र अपनी वफ़ा की सजा लेता हूँ॥
क्या मुक़द्दर है क्या है मेरे हाथ में,
लेके खंज़र लकीरें बना लेता हूँ।
पूछता है कोई जब तेरे बारे में,
होके खामोश पलकें गिरा देता हूँ।
दीपक चौरसिया 'मशाल'
खामोशी बयां करती है ग़ज़ल
ReplyDeleteक्या मुक़द्दर है क्या है मेरे हाथ में,
ReplyDeleteलेके खंज़र लकीरें बना लेता हूँ।
" सुंदर भाव और ख्यालात से सजी ये रचना बहुत सुंदर लगी....ये पंक्तियाँ कुछ ख़ास मन को छु गयी.."
Regards
thanks for ur kind n sicere comments friends, ur words will prove like fuel for this 'Mashal'.
ReplyDeletewith luv n regards
bahut sunder .... aisa laga ki dhadkan ki awaz ko hi shabd bana kar pesh kiya hai..
ReplyDeleteye kavita aeshaas dilati hai ki...
jo khud se jyada pyar kise aur se ho jai....
aise hi dil rota hai .jab wo kho jai..
very good keep it up