सीमा गुप्ता की कविता " एक शाम और ढली "
राह पे टकटकी लगाये ..
अपने उदास आंचल मे
सिली हवा के झोकें ,
धुप मे सीके कुछ पल ,
सुरज की मद्धम पडती किरणे,
रंग बदलते नभ की लाली ,
सूनेपन का कोहरा ,
मौन की बदहवासी ,
तृष्णा की व्याकुलता,
अलसाई पडती सांसों से ..
उल्जती खीजती ,
तेरे आहट की उम्मीद ,
समेटे एक शाम और ढली ....
- सीमा गुप्ता
राह पे टकटकी लगाये ..
अपने उदास आंचल मे
सिली हवा के झोकें ,
धुप मे सीके कुछ पल ,
सुरज की मद्धम पडती किरणे,
रंग बदलते नभ की लाली ,
सूनेपन का कोहरा ,
मौन की बदहवासी ,
तृष्णा की व्याकुलता,
अलसाई पडती सांसों से ..
उल्जती खीजती ,
तेरे आहट की उम्मीद ,
समेटे एक शाम और ढली ....
- सीमा गुप्ता
इंतजार से लबरेज़ आँखों को बहुत खूब वर्णन किया है.
ReplyDeletebadhi ho ek achhi kavita.
ReplyDeleteshahid "ajnabi" ji , मेरी इस कविता को यहाँ प्रस्तुत करने का बहुत बहुत आभार...."
ReplyDeleteregards
intzaar ka mahual ....acha byaan kiya
ReplyDeletecongrates, it's natural gals always are able to describe 'hizra' better thn guys.
ReplyDeleteregards n best wishes
बहुत खूब
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