Tuesday, March 17, 2009

ग़ज़ल

यूँ तो शबो - रोज़ वो पन्नों को काले किया करता है
लोग कहते हैं वो तो कविता लिखा करता है

जददो जहद तो ज़िन्दगी का हिस्सा हुआ करता है
जाने क्यूँ वो बार - बार किताबे ज़िन्दगी पढ़ा करता है

दिल में दर्द , आँखों में पानी और लव पे हलकी मुस्कराहट
अरे जनाब मुहब्बत के सफर में ऐसा ही हुआ करता है

ग़ज़ल और नज़्म लिखना तो एक बहाना है "अजनबी"
वो शायर तनहाइयों में हाले दिल लिखा करता है

- शाहिद "अजनबी"

2 comments:

  1. लिखा तो आपने अच्छा है पर एक गुस्ताखी के लिए माफ़ी चाहूँगा :

    गजल में बहर लडखडाती हुई लग रही है जनाब
    क्या आप मुझे इसकी बहर बता सकते हैं

    Arun "Adbhut"

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  2. badhiya hai..jaldi hi rachna bhejenge.
    badhai.
    visit on http://shabdkar.blogspot.com

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