ये कैसी है जीत तुम्हारी
ये प्रश्न उठे हैं आहों से
हो लेते हो खुश तुम कैसे
इंसानी चीखों से
क्या मकसद पूरे कर पाओगे
खून सने तरीकों से
कितने चूल्हे बुझा दिए
बस अपनी रोटी पाने को
कोख सुखाकर कितनी तुमने
डायन अपनी माँ को सिद्ध किया
अपने घर किलकारी भरने को
औरों का दीप बुझा डाला
सुर्ख सब पत्ते कर डाले
बस मौत नाचती जंगल में
कैसे अब सो तुम पाओगे
शापित होके शापों से
रंजित होकर आहों से
ये प्रश्न उठे हैं आहों से
ये कैसी है जीत तुम्हारी
दीपक 'मशाल'
ऐसा लग रहा है दीपक के तुम यंहा छतीसगढ में बैठ सब महसूस कर रहे हो.बहुत बढिय़ा.
ReplyDeletebahut khub
ReplyDeletebadhai aap ko is ke liye
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/