हर रोज करता हूँ मैं
इक नाकाम सी कोशिश
दिल में उम्मीद की
सौ शम्मा जलाये हुए
शायद राबता कायम हो जाये
और सुन सकूँ
वो मिश्री सी घुली आवाज़
जब घंटों नहीं सुनाई देते थे
वो चंद मासूम से लफ्ज़
अजब आलम तारी होता था
दिल की अंजुमन में
अब तो दिन क्या
महीनों गुजर गए
नहीं सुनी वो आवाज़
नहीं सुने वो मासूम लफ्ज़
बस बहला लिया दिल को
यूँ ही चंद नज्मेंऔर क़तात लिखके !!!
- - शाहिद अजनबी
जब घंटों नहीं सुनाई देते थे
ReplyDeleteवो चंद मासूम से लफ्ज़
अजब आलम तारी होता था
दिल की अंजुमन में
लाजवाब रचना है शुभकामनायें