Sunday, June 6, 2010

फिल्म 'राजनीति' मेरी नज़र में--------------->>>दीपक 'मशाल




आपने इस शुक्रवार को रिलीज हुई फिल्म 'राजनीति' के बारे में वैसे कई लोगों के विचार पढ़े ही होंगे... पर फिर भी अपना नजरिया रख रहा हूँ और मेरा मानना है कि राजनीति एक ऐसी फिल्म है जिसने पहली बार मुझे अहसास कराया कि कोई ऐसी फिल्म भी बन सकती है जिसमे कोई भी नायक नहीं बस और बस सभी खलनायक हों. बेशक फिल्म को तीन चर्चित कहानी/ हक़ीक़तों के आधार पर बनाया गया कह सकते हैं पर कोई भी कहानी पूरी तरह से प्रयोग नहीं की गयी इसलिए इसे खिचड़ी कहानी कह सकते हैं..... एक ऐसी कहानी जिसे बुनने में तीन -तीन कहानियों की मदद ली गयी और फिर गच्च-पच्च करके ऐसी पटकथा बनाया गया जिसका अंत बहुत हद तक देखने वाले की समझ में आप ही आ जायेगा.. और आधी या उससे कम फिल्म देखने के बाद जहाँ फिल्म का अंत पता चलने लगे उसे मैं फिल्मकार की असफलता ही मानता हूँ.
महाभारत की कहानी में कहीं-कहीं नेहरू परिवार और ठाकरे परिवार की कहानी को एक अजब रंगत देने के लिए इस्तेमाल किया गया है. पूरी तरह से महाभारत भी नहीं कह सकते हैं क्योंकि जो कभी शकुनि लगता है वो कभी कृष्ण बन जाता है, जिसे अर्जुन बनाने का प्रयास किया वो कौरव दल भी लगता है.. यहाँ भी सूरज जो महाभारत के कर्ण से मेल खाता है सारथी या ड्राइवर के घर पलता बढ़ता है और दुर्योधन की तरह ही वीरेंदर प्रताप उसे अपने दल में शामिल करता है.. और भी कई समानताएं हैं महाभारत के साथ.. शुरू से अंत तक शकुनि की तरह चालें चलने वाले नाना पाटेकर अंत में कृष्ण का रूप धर लेते हैं और कौरव कभी पांडव लगते हैं तो कभी पांडव कौरव. हर गंदे खेल को यहाँ राजनीति का नाम दे दिया गया है. कहानी को कोई ख़ास अच्छा नहीं कह सकते लेकिन मनोज वाजपेयी के अभिनय की दृष्टि से फिल्म को महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है जो कि हर किरदार पर भारी पड़े हैं.
ये बात भी सही है कि नसीर साहब यदि कहीं से वापस लाये जा सकते तो कहानी और रोमांचक और नयेपन से भर जाती.. वैसे उन्होंने बहुत छोटे से रोल में भी अच्छा अभिनय ही किया है. नाना पाटेकर अपनी एक नयी सी आवाज़ के साथ थोड़ा हटकर लगे. कैटरीना, अर्जुन रामपाल, अजय देवगन ने भी अपना चरित्र बखूबी निभाया है..
फिल्म में सन्देश ढूँढने की कोशिश करने वालों को हताशा ही हाथ लगेगी सिवाय इसके कि राजनीति में सब जायज़ है... कहीं थोड़ा सा दुःख ये भी होता है कि फिल्ममेकर भी ये मान बैठे हैं कि भारत में लोकतंत्र सिर्फ नाम का है........ है यहाँ पर अभी भी राजतंत्र ही. जनता और नेता दोनों को सिर्फ और सिर्फ चुनावों के कुछ समय पूर्व ये अहसास होता है कि इस देश में लोकतंत्र चलता है. ये बात और है कि जब भी कोई बड़ा फैसला लेना होता है तो वर्ग-विशेष को ध्यान में रख यहाँ राजनीति पर लोकतंत्र का आवरण चढ़ा कर पेश किया जाता है. फिल्म देखने के बाद राजनीति के लिए मन में एक और नफरत का बीज पड़ जाता है. ये फिल्म एक विश्वास और मजबूत करती है कि आप किसी फिल्म के महज़ कुछ दृश्य देखकर ये जान सकते हैं कि ये प्रकाश झा ने बनाई है या नहीं..
संभव है कि मैं फिल्म से कुछ ज्यादा ही उम्मीदें पाल गया होऊं.. इसीलिये फिल्म एक आकर्षक और ताली बटोरू फिल्म से ज्यादा कुछ नज़र नहीं आती.. अगर आपके पास समय की कमी हो तो फिल्म को कुछ दिन इंतज़ार कर किसी चैनल पर भी देखा जा सकता है... वैसे निर्णय आपका है. :)
अरे हाँ इस हफ्ते एक और फिल्म रिलीज हुई है.. राहुल बोस की 'The Japanese Wife'.. है तो ये आर्ट फिल्म.. पर मुझे यकीन है कि अगर आप बेहतरीन कहानी, कुछ नयापन या अच्छे अभिनय को देखना चाहते हैं तो ये फिल्म आपकी उम्मीदों पर खरी उतरेगी..
दीपक 'मशाल'

7 comments:

  1. आईये जानें .... मन क्या है!

    आचार्य जी

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  2. हम तो गुरुवार को वर्ल्ड प्रिमियर देख कर आये और मजा आया. एक तो पास आ गये थे तो फ्री में और मजा आया.

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  3. अच्छा विश्लेषण है (अभी तक फिल्म नहीं देखी है पर आपके बताने का तरीका अच्छा लगा)
    मैंने 'The Japanese Wife'..देखी है आपने बिलकुल सही कहा है
    "बेहतरीन कहानी, कुछ नयापन या अच्छे अभिनय को देखना चाहते हैं तो ये फिल्म आपकी उम्मीदों पर खरी उतरेगी."

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  4. वैसे अभी तक ये फिल्म देखी नहीं है इरादा था, अब वापस विचार करना पड़ेगा

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  5. kya yaar deepak bhai ....ab praksha jha jaise log bhi..box office ke chakkar me pad gaye hain lagta hai ...japnese wife hi dekhi jayegi ab to ... :) khair rajniti dekhni hai ..taki ye jan sakun ki itne achhe actors ko lekar buri film kaise banayi jati hai ...hehehe

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  6. क्या बात है दीपक फिल्म समीक्षा भी बढ़िया कर लेते हो ...कुछ छोडोगे या नहीं :) राजनीती तो देखनी ही पड़ेगी देखें क्या खिचड़ी पकाई है ..ओर हाँ "जापानी बीबी" की सी डी तो ढूंढनी ही पड़ेगी

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  7. आधुनिक महाभारत का नाम ही राजनीति है. जैसा कि ये अपने आप में सत्य है कि सभी के अपने सत्य होते हैं वैसे ही इस फिल्म के देखने वालों के भी अपने सत्य हैं. हमने भी इस फिल्म को देखा और सोचा था कि कुछ लिखेंगे पर.................
    इस फिल्म के द्वारा हमारे देश की उस राजनीति के दर्शन करवाए गए हैं जिसके कारण आज भला आदमी राजनीति से बच रहा है और किसी गलत काम के होने पर कहता है क्या किया जाए इट्स पोलिटिक्स. इस विभ्रम को तोड़ने का अपना एक प्रयास भी है ये फिल्म.....
    जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

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