Monday, February 16, 2009

गांव का घर मानव मंदिर

गांव लोगों के रहने का,
केवल एक स्थान नहीं है।
गांव का घर मानव मंदिर,
पत्थर का मकान नहीं है।

सभ्यता के चरम पै जाकर,
भाव सरल मन में जब आएं।
प्रकृति की गोद में खेलें,
पंछी संग बैठे बतियायें।
खुली हवा में करें ठिठोली,
अंदर तक चित्त खुश हो जाए।
गांव छोड कर ऐसे सुख का,
अन्य कोई स्थान नहीं है।
गांव का घर मानव मंदिर
पत्थर का मकान नहीं है

अपवादों को भूलो, पहले,
गांव का विज्ञान उठाओ।
कम साधन में जीने का,
वह पहला सुंदर ज्ञान उठाओ।
सहभागी हो साथ जिंएंगे,
जीवन एक अभिनाय उठाओ।
कल यंत्रों से चूर धरा को,
धो दे वह अरमान नहीं है।
गांव का घर मानव मंदिर,
पत्थर का मकान नहीं है।
- योगेश समदर्शी

2 comments:

  1. एक ऐसी रचना जो गांव के सांस्कृतिक महत्त्व को ही नहीं बताती बल्कि यह भी बताती है कि गांव का अपना एक विज्ञान है. वहां रहने के लिये कच्चे मकान हर तरह से मानव के लिये लाभदायक होते थे चाहे वह पर्यावरण की दृष्टि से हो या फिर प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से. व्यक्ति का सारा जीवन क्रम प्रकृति के सापेक्ष ही चलता था. चिंतन और दर्शन से भरी उत्तम रचना के लेखक भाई योगेश समदर्शी जी को तहे दिल से ढेर बधाई और नई कलम पर इसे पढवाने के लिये आपका भी आभार...
    मोहिनी

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