Monday, February 20, 2017

"अब मदर्स डे पर पेन डायरी नही देते मेरे बच्चे"

वो साल दो हज़ार सात का मदर्स डे था। मैं लंच निबटा कर बस थोड़ा आराम करने के लिए अपने कमरे में पहुंच किसी किताब के पन्ने पलट रही थी तभी देखा छुटकी से श्रेयसी और गोलू मोलू सा आत्रेय ,एक हाथ की ऊँगली होंठो पर और दूसरा हाथ पीछे छुपाए मेरे कमरे में आ रहे थे ।
आते ही एक ने मेरी आँखे बंद कर ली और दूसरे ने धप्पा कर दिया । ये उनका प्रिय खेल था इसलिए मैं मुस्कुरा कर रही गयी । मगर ये बच्चे छुपा क्या रहे ? मैं कुछ पूछूं इससे पहले दोनों एक साथ बोल पड़े । माँ हम आपके लिए एक गिफ्ट लाये हैं मदर्स डे का। पर आपको न हमे भी रिटर्न गिफ्ट देना पड़ेगा । मुझे हंसी आ गयी थी , मुझे लगा ये दोनों शैतान पिज़्ज़ा या चॉकलेट के जुगाड़ में है । मैंने दोनों हाथ फैला दिये , दो मेरा गिफ्ट तुम्हे रिटर्न गिफ्ट मिल जाएगा । श्रेयसी और आत्रेय ने अपना पीछे छुपाया हाथ एक साथ बाहर किया ।
चार साल के आत्रेय के हाथ में एक बॉल पेन और श्रेयसी के हाथ में एक डायरी थी । श्रेयसी ने कहा हमारा रिटर्न गिफ्ट ये है माँ की आप इसे अगले साल के मदर्स डे पर वापस करना खूब सारी पोएम लिख कर । और फिर हम इसकी एक सुंदर सी कितांब बनाएंगे माँ । नन्हा आत्रेय पुलक कर बोलते बोलते हकलाने लगा था ।
मां आप अपनी पुरानी डायरियों में कागज़ की कतरनों में अपनी पोएट्री पढ़ कर खुश होती हो हमे अच्छा नही लगता ।
मुझे करंट सा लगा था ।इन दोनों ने मुझे कब देखा पुरानी कविताएं पढ़ते कतरने सहेजते । खैर मैंने उन दोनों को हाँ तो कह दिया पिज़ा मंगवाया और सेलिब्रेट हो गया मदर्स डे ।
कुछ दिनों बाद दोनों का रिमांडर आ जाता आपने पोएम लिखी माँ ? मैं हंस देती । महीनों गुज़र गए एक दिन एकांत में मैंने चुपके से डायरी और पेन उठाई । सोचा आज कुछ लिखती हूँ । डायरी खोली पेन का ढक्कन हटाया मगर ये क्या ? मैं तो लिखना भूल चुकी थी । एक लाइन भी नही सूझी घण्टो आँख में आंसू लिए बैठी रही कुछ नही सुझा । याद आया मै अपने कॉलेज और जिले की ही नही प्रदेश की बेस्ट डिबेटर रही हूँ । विज्ञान की विद्यार्थी होने के बावजूद कॉलेज की हर साहित्यिक प्रतियोगिता में मेरा स्थान सुरक्षित रहता था । आशु भाषण लिखना बोलना और पुरस्कार झटक लेना मेरे लिए सिर्फ एक खेल हुआ करता था।
कॉलेज के बाद भी खूब लिखती स्थानीय अखबारों पत्रिकाओं में छपती कभी कभी पैसे भी मिलते । फिर अचानक ऐसा कैसे हुआ की मैं लिखना ही भूल गयी । याद आया की पिछले दस वर्षों में मैंने एक लाइन भी नही लिखी थी ।
दिन गुजरने लगे थे बच्चे अपना रिटर्न गिफ्ट याद दिलवा ही देते गाहे बेगाहे । मैं अकेले में लगभग रोज डायरी लेकर बैठती और मुझे एक लाइन भी न सूझती ।ग्लानि से भर जाती मैं ।धीरे धीरे साल गुजरने को आया अगला मदर्स डे आने वाला हो गया था पूरे एक साल की कोशिश के बाद भी मैं एक लाइन नही लिख पायी थी। गृहस्थी गज़ब के मेन्टल ब्लॉक लाने वाली जगह है । आप अपनी रचनात्मकता घर का डेकोर बदलने में । या फिर चाइनीज़ मुगलई ,थाई या फिर कॉन्टिनेंटल बनाने में इस्तेमाल करते है । बजट बनाते हुए कम खर्चे वाले मार्किट ढूढते हैं और ऐसे तमाम छोटे छोटे काम जिन्हें नोटिस ही नही किया जाता आप खुद को खर्च कर देते है । धीरे धीरे आप चुक जाते है और आपके भीतर एक सन्नाटा पसर जाता है ।
मदर्स डे आ गया बच्चे फिर से डायरी पेन ले आये । मुझे सांत्वना दी कोई उलाहना नही । आप नही लिखी न माँ चलो अब इस साल लिखना हमारा गिफ्ट हम बाद में ले लेंगे ।
मैं ये सोचना बन्द करने वाली थी की अब दुबारा लिखना हो पायेगा अचानक स्कूल में बैठे बैठे एक कविता लिखी वो भी अवधी में ।
बस फिर क्या था जो शुरू हुआ लेखन का दूसरा दौर तो लगभग रोज लिखने लगी ।डायरियां भरने लगी जो पढा और जिया था सब धीरे धीरे व्यक्त होने लगा ।
अब मदर्स डे पर डायरी पेन नही देते मेरे बच्चे
आज बिटिया का जन्मदिन है । सुबह से उसे याद ही कर रही हूँ । मेरे भीतर जो भी रचनात्मकता बची रह गयी या पुनसृजित हुई सब तुम्हारे नाम बिट्टो । खूब खुश रहो । प्रसन्नता के सातों आसमान तुम दोनों के नाम ।
मृदुला शुक्ला

7 comments:

  1. समय-समय की बात है
    विचारणीय प्रस्तुति ..

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  2. शुभ प्रभात
    बच्चे भी समझते हैं
    माता-पिता की तकलीफें
    ...
    एक बात समझ मे नही आ रही
    माता- पिता लिखा जाता है हरदम
    पिता-माता क्यों नहीं
    क्यो ?
    सादर

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  3. वक्त के साथ बहुत कुछ पीछे छूट जाता हैं सेकिन यादों में कुछ बाते सदा याद रहती हैं।

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