Monday, March 9, 2009

तुम चाहो तो

एक अधूरे गीत का
मुखडा मात्र हूँ,
तुम चाहो तो
छेड़ दो कोई तार सुर का
एक मधुर संगीत में
मै ढल जाऊंगा ......
खामोश लब पे
खुश्क मरुस्थल सा जमा हूँ
तुम चाहो तो
एक नाजुक स्पर्श का
बस दान दे दो
एक तरल धार बन
मै फिसल जाऊंगा......

भटक रहा बेजान
रूह की मनोकामना सा

तुम चाहो तो
हर्फ बन जाओ दुआ का
ईश्वर के आशीर्वाद सामै फल जाउंगा.....

राख बनके अस्थियों की
तिल तिल मिट रहा हूँ
तुम चाहो तो
थाम ऊँगली बस
एक दुलार दे दो
बन के शिशु
मातृत्व की ममता में
मै पल जाऊंगा .....

- सीमा गुप्ता

1 comment:

  1. मेरे इस कविता को यहाँ मान सम्मान देने का दिल से शुक्रिया....

    Regards

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