Monday, June 15, 2009

ग़ज़ल

ग़ज़ल जिस अंदाज के लिए जानी जाती है आज "नई क़लम "के पाठकों को ऐसी ही एक उर्दू ग़ज़ल सौंप रहा हूँग़ज़ल का लुत्फ़ लें और अपनी राय भी दर्ज करें ताकि आने वाले कल में आप को एक ऊंचे मेयार के अदब से रूबरू कराया जा सके

नहीं होगा असर उन पर कभी आंसू बहाने से
ये शामे ग़म भी ढलती है कहीं दिल के जलाने से

हुजूमे ग़म से घबराकर तू दिल आह भरना
तुझे हँस कर उठाना है अताए ग़म जमाने से

तेरी काफिर निगाहें भी मुजस्सिम हैं क़यामत की
ये बाज़ आए नहीं हुस्ने बुताँ बिजली गिराने से


मैं बादा कश नहीं यारो मगर ये कैफ छाया है
ग़मे जानाँ को दिलबर दिलनशीं अपना बनाने से

करम फरमा याँ तौबा सुरुरे चश्मे जानाँ की
बहक जाएँ हम साक़ी कहीं मय के पिलाने से

"जलील" ऐसी ग़ज़ल छेड़ो की वो मजबूर हो जाएँ
सुना है वो नहीं आए सरे महफ़िल जमाने से

- अब्दुल जलील

5 comments:

  1. RACHANAA KE BHAV ACHHE HAI


    BADHAAYEE

    ARSH

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  2. नहीं होगा असर उन पर कभी आंसू बहाने से
    ये शामे ग़म भी ढलती है कहीं दिल के जलाने से

    कुछ ऐसा ही है मुहब्बत में.
    ग़ज़ल में बड़ी खुबसूरत रवानी है.
    बहुत खूब साहब बहुत खूब
    मुबारक हो.

    शाहिद "अजनबी"

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  3. नहीं होगा असर उन पर कभी आंसू बहाने से
    ये शामे ग़म भी ढलती है कहीं दिल के जलाने से

    कुछ ऐसा ही है मुहब्बत में.
    ग़ज़ल में बड़ी खुबसूरत रवानी है.
    बहुत खूब साहब बहुत खूब
    मुबारक हो.

    शाहिद "अजनबी"

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  4. बहुत ख़ूब जनाब!!!
    बस एक गुज़ारिश है कि ग़ज़ल में कुछ मुश्किल लफ्ज़ भी आ जाते हैं, हो सके तो इनका मतलब ग़ज़ल के आखिर में दे दें.

    साभार
    हमसफ़र यादों का.......

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  5. हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया.

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