कभी मंजिलें तो कभी सफ़र ढूँढती नज़र आई,
वो मुझे रोज़ रह गुज़र ढूँढती नज़र आई।
मैं छुपता रहा उससे कई बार और वो,
सरे बज़्म मेरी नज़र ढूँढती नज़र आई।
एक हम जो बेवफाई करके भी भूल गए,
एक वो, हर दुआ का असर ढूँढती नज़र आई।
हम ढूँढ़ते रहे इस शहर में अपना सा कोई,
और वो मुझमें अपना सा शहर ढूँढती नज़र आई।
दुआओं की तरह बदल लिए थे जो चेहरे,
मौत तुम्हे इधर तो मुझे उधर ढूँढती नज़र आई।
धड़कता है दिल तो लहू भी छनता होगा,
सासें फिर वही जिगर ढूँढती नज़र आई ।
रिन्दों को तो सुना है मिल गया था खुदा,
दुनियाँ भी उसे अब इस कदर ढूँढती नज़र आई।
ऐसे भटका कि भूल गया 'अरे तू भी तो थी !
ख़ुशी बेशक मुझीको मगर ढूँढती नज़र आई।
चाँद में ज़िन्दगी के निशां ढूंढते हो मियां ?
और ये, इस जहाँ में गुज़र ढूँढती नज़र आई।
लाखों करोडों के इस 'नीती' शास्त्र में यारों ,
वो 'दर्शन' का सिफर ढूँढती नज़र आई।
(दर्शन= फिलोसोफी)
- दर्पण साह "दर्शन"
वो मुझे रोज़ रह गुज़र ढूँढती नज़र आई।
मैं छुपता रहा उससे कई बार और वो,
सरे बज़्म मेरी नज़र ढूँढती नज़र आई।
एक हम जो बेवफाई करके भी भूल गए,
एक वो, हर दुआ का असर ढूँढती नज़र आई।
हम ढूँढ़ते रहे इस शहर में अपना सा कोई,
और वो मुझमें अपना सा शहर ढूँढती नज़र आई।
दुआओं की तरह बदल लिए थे जो चेहरे,
मौत तुम्हे इधर तो मुझे उधर ढूँढती नज़र आई।
धड़कता है दिल तो लहू भी छनता होगा,
सासें फिर वही जिगर ढूँढती नज़र आई ।
रिन्दों को तो सुना है मिल गया था खुदा,
दुनियाँ भी उसे अब इस कदर ढूँढती नज़र आई।
ऐसे भटका कि भूल गया 'अरे तू भी तो थी !
ख़ुशी बेशक मुझीको मगर ढूँढती नज़र आई।
चाँद में ज़िन्दगी के निशां ढूंढते हो मियां ?
और ये, इस जहाँ में गुज़र ढूँढती नज़र आई।
लाखों करोडों के इस 'नीती' शास्त्र में यारों ,
वो 'दर्शन' का सिफर ढूँढती नज़र आई।
(दर्शन= फिलोसोफी)
- दर्पण साह "दर्शन"