Friday, December 31, 2010

कह दो पापा "बहादुर बच्चे"


ये कविता मेरे पिता के लिए है जिन्होंने इस महीने की 11 तारिख को दुनिया छोड़ दी!

वो छोड़ गए अपनी यादें वो छोड़ गए अपनी बातें उनका अहसास है अब तो मेरे साथ क्यों रूठ गए हैं आप आज
इतना
कि मनाना भी अब नहीं कम आएगा
आसमान में तारा बनके क्या देख रहे हैं आप आपके बच्चे बुलाते हैं आपको
पापा
जाईये एक बार कि
हम
एक बार आपसे कह लें
अपने
दिल कि बात
आपके बिना अधूरा है जीवन माँ कि आँखें ढूंढती हें आपको जाओ पापा
फिर भले ही रूठ जाना यहाँ आके
एक
बार कह दो पापा "बहादुर बच्चे"
फिर नहीं चाहिए किसी का साथ
होगी
मुलाकात आपसे
किसी
किसी रूप में
ये
अहसास है हमको हम इंतज़ार करेंगे
उस
पल का जब तक हमारी आँखें
आपका
रास्ता ताकती रहेंगी !!

- शिखा वर्मा "परी" , कानपुर
(कवियत्री इंजीनियरिंग के दूसरे वर्ष में अध्यनरत हैं )

7 comments:

  1. प्रिये परी,
    एक छोटी सी जान और इतना बड़ा ग़म, आखिर कोई सहे भी तो कैसे सहे. मैं कुछ भी लिखूंगा मगर वो शब्द इन शब्दों से छोटे ही होंगे जो इस कविता के माध्यम से आपने लिखा है, दर्द को समेटे नन्ही सी जान के अपने पापा के लिए बड़े से अल्फाज़. हमारा संपादक मंडल और नई क़लम परिवार आपके साथ है. यकीनन अब और लिखा नहीं जा रहा है.

    शाहिद "अजनबी'

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  2. हे भगवान.... इतने सारे दुख एक साथ ओर अलग अलग रुप मे, इस बच्ची को हिम्मत दे तु भगवान इन सब को सहने की ओर आने वाला नया साल इस के लिये राहत ले कर आये, ओर इस की मां जल्दी से अच्छी हो जाये, आमीन

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  3. भगवान इस बच्ची पर रहम कर इस नए साल में.

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  4. वो छोड़ गए अपनी यादें
    वो छोड़ गए अपनी बातें
    उनका अहसास है अब तो मेरे साथ
    क्यों रूठ गए हैं आप आज
    इतना कि मनाना भी अब नहीं कम आएगा
    .
    Bhavuk ho utha..sabr

    नववर्ष आपके लिए भी मंगलमय हो और जीवन में सुख सम्रद्धि ले कर आ

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  5. dard apnon ke zane ka hume bahut salta hai,
    dukh ki is ghdi me apni samvedna ke saath aap ke ehsaas me hun.

    mujhe madushala ki ek pankti yaad aa rahi hai ...
    jo beet gayi wo baat gai,
    jeevan me ek sitara tha,
    wo behad jaan se pyara th.


    shesh fir..
    aapka apnahi..
    sagar

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