अपने गुज़रे हुए कल को सोचते- सोचते ऐसी जगह पहुँच गया जहाँ एक नज़्म नमूदार हो गयी। आज वही नज़्म आपके हाथों में सोंप रहा हूँ. आपके प्यार का इंतजार रहेगा -
तंगहाली की वो आइसक्रीम
चन्द रुपयों के वो तरबूज
किसी गली के नुक्कड़ की वो चाट
सुबह- सुबह
पूड़ी और जलेबी की तेरी फरमाइशमुझे आज भी याद है
कैसे भूल जाऊं
अम्मी से पहली मुलाकात
और मेरी इज्ज़त रखने के लिएपहले से खरीदा गया तोहफामेरे हाथों में थमाना
ये कहते हुए किअम्मी को दे देनाकैसे भूल जाऊं
वो नेकियों वाली
शबे बरात कि अजीमुश्शान रातकहते हैं
हर दुआ क़ुबूल होती है उस रात
मुहब्बत से मामूर दिल
और बारगाहे इलाही मेंउट्ठे हुए हाथ
हिफाजते मुहब्बत के लिएकैसे भूल जाऊं
कैसे भूल जाऊंवो पाक माहे रमज़ानसुबह सादिक का वक़्त
खुद के वक़्त की परवाह किये बगैर
सहरी के लिए मुझको जगाना
दिन भर के इंतज़ार के बाद
वो मुबारक वक्ते अफ्तारी
हर रोज मिरे लिए कुछ मीठा भेजना
कैसे भूल जाऊं
मेरा वक़्त- बे- वक़्त डांटना
क्यूँ भेजा था तुमने
कल से मत भेजना
और वहां से-
वही मखमली आवाज़ में
रुंधे हुए गले का जवाबहो सकता है
ये आखिरी अफ्तारी हो
खा लो शाहिद
मेरे हाथों की बनी हुयी चीजें
जाने कब ये पराये हो जाएँ
कैसे भूल जाऊं.......
- शाहिद अजनबी
bhulna bhi nahi chahiye. khubsurat rachna. aabhar.
ReplyDeleteवाकई, कोई कैसे भूल सकता है...बढ़िया.
ReplyDeleteबहुत सुंदर बयान है , लिखते रहियेगा !
ReplyDeleteबहुत कोमल एहसास ...
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 07- 06 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच --- चर्चामंच
ये सब भूलना आसान नहीं है , और भूलना भी क्यों ....
ReplyDeleteखूबसूरत एहसास !
ये सब भूलने के लिए थोड़ी न होती हैं...
ReplyDeleteमन को छूने वाली सुन्दर रचना...
स्मरण योग्य भावाभिव्यक्ति......
ReplyDeleteसुंदर एहसासों का ताना -बाना है आपकी नज़्म .....
ReplyDeleteशब्दों का माधुर्य आकर्षित करता है .....
bhut achche ahsaas se labrej prastuti dil ko choo gai.shubhkamnayen.
ReplyDeleteapne blog par bhi aamantrit karti hoon.
ReplyDeleteबेशकीमती एहसासों को पिरोया है, अजनबी भाई...
ReplyDeleteसादर शुभकामनाये
बहुत सुन्दर...बधाई
ReplyDeleteखूबसूरत अहसासों को पिरोती हुई एक सुंदर रचना. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
माँ के प्यार को जो भूल गया ओ इंसान क्या दरिंदा भी नहीं है .बहुत भावक कृति .जिसके माँ नहीं है वही समझ सकता है.
ReplyDeleteअंतस से निकले आपके जज़्बात काबिले तारीफ़ है .लिखते रहिये .शब्द शिल्प अपने आप आ jayega .
ReplyDeleteREALLY A VERY GR8 THOUGHT SIR,,,,,, VERY GUD WORK SIR... PLZ KEEP IT ON SIR!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteमन के तारों को झंकृत करने वाली नज्म।
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ब्लॉगसमीक्षा की 27वीं कड़ी!
क्या भारतीयों तक पहुँचेगी यह नई चेतना ?
Overwhelming...very heart-touching thoughts u owe...
ReplyDeleteएहसास जी
ReplyDeleteउड़न तश्तरी जी
सतीश जी
संगीता जी
वाणी जी
रंजना जी
निवेदिता जी
हरकीरत जी
रविकर जी
राजेश कुमारी जी
हबीब जी
गाफ़िल साहब
डोरोथी जी
विजय जी
ज़ाकिर साहब
अमृतेश
और प्रियंका
आप सब का बहुत बहुत शुक्रिया...
AAPNE REALLY BHUT HI ACCHA LIKHA HAI SIR.......... TO PHIR SHUKRIYA KI BILKUL B JRURAT NI HAI SIR.......... THANX 2 U THAT U HV WRITTEN THIS 4 ALL OF US,,,,,,,,,, SO THANX SO MUCH SIR........
ReplyDeleteअम्मी से पहली मुलाकात
ReplyDeleteऔर मेरी इज्ज़त रखने के लिए
पहले से खरीदा गया तोहफा
मेरे हाथों में थमाना
ये कहते हुए कि
अम्मी को दे देना
कैसे भूल जाऊं
.....बीते लम्हों का सुन्दर भावपूर्ण चित्रण ..
बहुत बढ़िया रचना .... बधाई
badi sahjta se bahti hui ..pyari si kavita .
ReplyDeletebahut samvedansheel nazm.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteits great creation ....
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