Tuesday, November 22, 2011

हिना के जैसी सुन्दर थी

वो कितनी प्यारी  प्यारी  थी
कुछ खुशबू सौंधी  सौंधी थी
कुछ हिना के जैसी सुन्दर थी
कुछ गुलशन जैसी महकी थी
कुछ समीर सी चंचल थी
कुछ माखन सी तासीर भी थी
वो कितनी प्यारी प्यारी थी


एक दिल था भोला  भाला सा
जिसमे कितनी गहराई थी
नैना थे बिलकुल हिरनी से
दुनिया की जिनमे परछाईं थी
सीरत तो बिलकुल ऐसी कि  
जैसे खुदा से शोहरत पायी थी
वो कितनी प्यारी प्यारी थी.

जब मुझे देखती थी वो तब
सारी खुशियाँ मिल जाती थी
सोंचा इक दिन मैंने कि
बस उसकी तस्वीर बना डालूँ
पर बन कर जब तैयार हुई
तो अपनी ही बेटी पाई थी.
अब इतना ही बस कहना है
वो कितनी प्यारी प्यारी है.
वो सबसे  प्यारी प्यारी है.
- कौशल किशोर, कानपुर

Saturday, November 12, 2011

तू भी कल प्यार में हो

आज एक और कलम की इबारत आपके हाथों  में सौंप रहा हूँ. कौशल किशोर जो की एक इंजीनियरिंग कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. उनकी लिखी एक नज़्म कुछ यूँ हैं - 

मत उठा मेरे प्यार पे ऊँगली ऐ शाहिद 
मत करो दूर दो रूंहों को अलग ऐ शाहिद 
हम भी अल्लाह के बन्दे हैं कुछ तो डर ऐ शाहिद 
कहीं ऐसा न हो कि, तू भी कल प्यार में हो 
और बन जाऊं मैं शाहिद 

- कौशल किशोर, कानपुर
( शाहिद एक अरबी लफ्ज़ है जिसका मायने गवाह है ) 

Tuesday, November 1, 2011

आज तक

आज फिर  आपके सुपुर्द आलोक  उपाध्याय "नज़र" के शे'रों को कर रहा हूँ- 

टूटे इकबारगी,  बिखर रहे हैं आज तक 
ज़िन्दगी की क़ैद में मर रहे हैं आज तक 

वो बेबाक़ था, दिल को छलनी  कर गया 
हम दिल की सुराखें भर रहे हैं आजतक 

लोग उम्र काट देते है किसी एक के सहारे
उसी के याद में दिन गुज़र रहे है आजतक 
- आलोक  उपाध्याय "नज़र"