आज फिर आपके सुपुर्द आलोक उपाध्याय "नज़र" के शे'रों को कर रहा हूँ-
टूटे इकबारगी, बिखर रहे हैं आज तक
ज़िन्दगी की क़ैद में मर रहे हैं आज तक
वो बेबाक़ था, दिल को छलनी कर गया
हम दिल की सुराखें भर रहे हैं आजतक
लोग उम्र काट देते है किसी एक के सहारे
उसी के याद में दिन गुज़र रहे है आजतक
- आलोक उपाध्याय "नज़र"
आहा सा'ब क्या शे'र निकले हैं कलम से.. एक एक शे'र का जवाब नहीं
ReplyDeleteवो बेबाक़ था, दिल को छलनी कर गया
ReplyDeleteहम दिल की सुराखें भर रहे हैं आजतक
बहुत खुबसूरत शेर......